पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२२८

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ग्राख्यात प्रत्यय रूप-विचार २०३ दूसरे प्रकार के रूप-साधक प्रत्यय आख्यात प्रत्यय कहे जाते हैं क्योंकि वे आख्यात अर्थात् क्रिया-रूपों में मिलते हैं। ये आख्यात प्रत्यय भी दो प्रकार के होते हैं-(१)पुरुष-प्रत्यय, (२) विशेपक-प्रत्यय । पुरुषप्रत्यय संस्कृत में तिङ् कहे जाते हैं और गच्छति, गच्छतः, गच्छन्ति आदि उनके उदाहरण हैं अर्थात् ये क्रिया के विभक्ति-प्रत्यय हैं। इनसे कोल और वचन के साथ ही प्रथम, मध्यम और उत्तम पुरुषों का बोध होता है। विशेषक प्रत्यय केवल रूपों की सिद्धि में सहायक होते हैं अत: वे भी कई प्रकार के होते हैं जैसे विकरण, आगम आदि । विकरण ऐसे अंतःप्रत्यय होते हैं जो क्रिया में पुरुष-प्रत्यय जुड़ने के पहले लगते हैं और जिनसे क्रिया के गण, काल, वाच्य आदि का भी बोध होता है जैसे गच्छति अथवा युध्यते में ति और ते पुरुष-प्रत्यय हैं और अ और य विकरण हैं । संस्कृत में मुख्य विकरण ये होते हैं.-शप, शपो, लुक् , श्ल, श्यन्, श्नु, श, श्नम् उ, श्ना, यक् , जि (और उसके सब आदेश), तासि, स्य और सिप । इनमें से पहले नव विकरण क वाच्य में वर्तमान, भूत, आज्ञा और विधि की विभक्तियों के पहले धातुओं में लगते हैं या भावे और कर्मणि में लगता है। 'च्लि' लुङ् लकार में, तासि' लुट में और 'स्य' लुङ् और हेतुहेतुमद्भूत में लगता है । शिप लेट में लगता है। इन विकरणो की अन्य भारोपीय भाषाओं के उसी ढंग के विशेषक प्रत्ययों से तुलना करें तो बड़ा लाभ हो सकता है । मूल भारोपीय भाषा में ब्रुगमान के कथनानुसार कोई बत्तीस से अधिक ऐसे विशेषक प्रत्यय थे । (१) यहाँ जिस अर्थ में श्रागम लिया गया है उसके अनुसार आगम एक पुर:-प्रत्यय है और विकरण अन्तः प्रत्यय | अर्थ से दोनों ही काल के द्योतक होने से एक जाति के माने जा सकते हैं।