पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२३

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भाषा-विज्ञान के बगल में दो बाने पाती हैं-युत्पत्ति-विचार और भाषा के बौद्ध नियमों की मीमांमा ! आज व्युत्पत्ति-विचार अथवा निर्वचन एक शाय बन गया है। निहानिक और ध्वनि-परिवर्तन संबंधी विचारों ने उसे वैज्ञानिक रूप दे दिया है। भाषा के बौद्ध नियमों का अनुशीलन भी यफ मुन्दर विषय बन गया है । किन प्रकार शब्द अर्थ को चलना और अपनाना है और किन प्रकार अर्थ शब्द का त्याग और माना तथा कैसे इन 'अों का संकोच या विस्तार होता है- मननय यानी का 'प्रय मातंत्र दिवचन होने लगा है। इसी विषय को लोग अतिशय का नाम भी देते हैं। इस अर्थ-विचार अर्थात् निशाय नथा 'प्रातिशय के 'प्राधार पर भापा द्वारा प्राचीन नाम और गति की कल्पना की जाती है । ऐनी भाषामूलक प्राचीन गांर भाग-निसान का एक बड़ा मात्त्वपूर्ण अंग हो गई है। इन पत्र गों कारियों साग पृथक पृथक अध्ययन किया जाता है। पर शान्त्र नामान्य परिचय दिन न गव का माधारगनान अनिवार्य है 1 भागान मुग्न प्रकरण, भाषा को इतिहास, भाषा-विज्ञान का निर, माता वर्माता, नि-शिक्षा, नि-विचार, कप-विचार, गार, सारन विचार और भावा-मूलक प्राचीन शोध है। अंतिम तर यो माया प्राम: किमी एक भाग का वैज्ञानिक नमय मिला नाग-विज्ञान की पूर्ण बनाते हैं। fai भासमा ययन प्रकार में होता है। एक गतिहामिक तर मग नागा । नाम र अध्ययन भी अधिकांश में

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मनियमित गयन पर निर्भर है। जब नसकिन मन के प्राचीन और नवीन TRAI नर नर उनकी परसर कुचना नति मिन पर रचना कठिन हरण, मा. गदा, मि, मन, गप E, पर ना मान . । .