पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 २०८ भाषा-विज्ञान रूप का संबंध भाषा के कार्य और व्यवहार से अधिक रहता है और ध्वनि-मात्र तो शब्द का एक ऐसा अंग है जिस पर वाक्यार्थ का प्रभाव पीछे पड़ता है। यहाँ शब्द का पारिभाषिक अर्थ ध्यान में रखकर ही विचार करना चाहिए । इसी प्रकार रूप-विकार अमुक प्रयोग से प्रारंभ होते हैं और उनका क्षेत्र भी परिमित होता है अर्थात् अमुक अर्थ में अमुक प्रत्यय अथवा शब्द में किस प्रकार विकार होता है। दोनों प्रकार के विकारों का भेद उनके परिणाम देखने से भी मालूम हो जाता है। ध्वनि-विकार जब होता है तब वह स्थानी का नाश करके ही अपना आसन जमाता है, पर रूप-विकार अपने साथ अपने पूर्व कार्यकर्ता को भी प्राय: रहने देता है। इसी से नये रूपों के चल जाने पर भी पुराने अनेक रूप भी प्रयोग में आया करते हैं। अत: रूप-विकास की अनेक अवस्थाओं के कुछ कुछ चिह्न ऐतिहासिक को मिल जाया करते हैं। साधारण शब्दों में रूप-विकार का अर्थ है रूपमात्र का नाश, उत्पत्ति अथवा परिवर्तन । कभी रूप-मान का नाश हो जाता है और शब्द स्वयं ही उसका कार्य करने लगता है, कभी उस रूपमान के नाश के साथ ही दूसरे रूपमात्र की उत्पत्ति होती है और कभी एक रूपमात्र के स्थान में दूसरा रूपमात्र कार्य करने लगता है । इसी प्रकार की चिंता रूप-विकार की चिता कहलाती है। शब्द के रूपों में विकार मुख्यतः दो प्रवृत्तियों के कारण होते हैं। बोलनेवालों की पहली प्रवृत्ति यह होती है कि शब्द के भिन्न भिन्न रूपों में कुछ साहश्य और समता हो। यही एक- रूप-विकार के कारण रूपता (uniformity) की इच्छा बहुत से व्यवहार में आनेवालं रूपमात्रों का विनाश कर देती है। दूसरी सामान्य प्रवृत्ति होती है कि हम अपने अर्थ ठीक ठीक प्रकट कर . कम (2) Cf. Vendryes Language P. 55 व्हेन्द्रिए ने फ्रेंच में उदाहरण देकर इस भेद को स्पष्ट किया है।