पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२३४

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रूप-विचार २११ प्रकार की सहायता देते हैं। इस जिज्ञासा की पूर्ति के लिये हम शब्दों का वर्गीकरण करते हैं। भिन्न-भिन्न भाषाओं के चैयाकरणों ने शब्दों का वर्गीकरण भिन्न भिन्न प्रकार से किया है; और शब्दभेदों की संख्या दस तक पहुँच गई है, पर वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने पर मुख्य शब्द-भेद तीन ही बच जाते हैं। इसी से भारतवर्ष में प्राचीन काल में शब्दों के तीन विभाग किए गए थे—(१) नाम, (२) आख्यात और (३) निपात । पर आजकल का वर्गीकरण इस प्रकार का है-(१) संज्ञा, (२) क्रिया, (३) अव्यय । संज्ञा के अंतर्गत ही विशेषण और सर्वनाम को भी स्थान दिया जाता है। विशेषण को गुणवाचक संज्ञा भी कहते हैं। हमारे यहाँ अव्ययों का एक विस्तृत विभाग माना गया है जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के अव्यय होते हैं। अव्यय का प्रधान लक्षण यह है कि लिंग वचनादि के कारण उसमें कोई परिवर्तन या रूपांतर नहीं होता। पाश्चात्य देशों में, शब्दों के आठ विभाग किए गए हैं। यह वर्गीकरण यूनानी विद्वानो का किया हुआ बतलाया जाता है। पर इन आठों विभागों के लैटिन नाम होने के कारण जान पड़ता है कि रोमन लोगों ने इसमें यथेष्ट संशोधन किया था। आधुनिक भारतीय भाषाओं में पाश्चात्य देशों के अनुकरण पर-विशेषकर अँगरेजी के प्रभाष से-शब्दों के आठ भेद माने जाते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया और विशेषण तो पहले ही से प्रसिद्ध हैं। अव्ययों के चार उपविभाग किए जाते हैं अर्थात् क्रिया-विशेषण, समुच्चय- बोधक, संबंध-बोधक और विस्मयादि-बोधक । इस प्रकार सव मिलाकर आठ विभाग हो गए । नीचे हम प्रत्येक शब्द-भेद का पृथक् पृथक विवेचन करेंगे। प्रत्येक वाक्य में कुछ शब्द प्रधान होते हैं और कुछ अप्रधान । उदाहरण लिए हम यह वाक्य लेते हैं। एक काला घोड़ा आया । इस वाक्य में 'घोड़ा' और 'आया' दो शब्द ही मुख्य हैं। भाव-प्रकाशन में जितना महत्त्व संज्ञ