पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२३५

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२१२ भाषा-विज्ञान इन दोनों शब्दों का है उतना अन्य शब्दों का नहीं । केवल 'घोड़ा आया' कहने से भी वाक्य का भाव बहुत कुछ व्यक्त हो जाता है। अब इन दोनों शब्दों में भी 'घोड़ा' शब्द अधिक महत्त्व का स्थान रखता है। पहले हम कह चुके हैं कि आदि भाषा में एक एक शब्द पूरे वाक्य का काम करता था और वह एक शब्द संज्ञा होता था। उसी प्रसङ्ग में हम एक बच्चे का उदाहरण देकर समझा चुके हैं कि जिस वस्तु के विपय में हम कुछ कहना चाहते हैं केवल उसका नाम लेकर चेष्टादि द्वारा उसके विषय में कुछ विधान करके अपने भावों को व्यक्त कर सकते हैं। मनुष्य को पहले पदार्थ का बोध होता है और तब क्रिया का। अतएव हमारे विचार से संज्ञा ही सबसे प्राचीन शब्द- भेद है। विदेशी शब्दों का ग्रहण प्रायः सभी भाषाओं में होता है। जब एक जाति का संसर्ग दूसरी जाति से होता है तव उनकी संस्कृति, सम्यता, रीति-रिवाज, बोलचाल आदि का परस्पर आदान-प्रदान होता है । विदेशी शब्दों के ग्रहण में कई प्रकार के व्यापार सहायक होते हैं जिनमें से मुख्य हैं आगम, विपर्यय, लोप और विकार । कभी कभी विदेशी शब्द तत्सम रूप में ग्रहण किए जाते हैं; जैसे अँगरेजी से हिंदी में मोटरकार, साइकिल, सिनेमा इत्यादि शब्द लिए गए हैं । कोचवान, लालटेन, लौट इत्यादि शब्द तद्भव रूप में आए हैं। कभी कभी नए याविष्कारों के लिये जव अपनी भाषा में नाम नहीं होते हैं तब या तो मूल आविष्कार के दिए हुए नाम को ही ग्रहण कर लेते हैं, जैसे ऊपर दिग हुए साइकिल, सिनेमा इत्यादि या उनके लिये अपने यहाँ नए शब्द गढ़ लेने हैं; जैसे acroplane वायुयान या हवाई जहाज, electric light विद्युत्प्रकाश । कभी कभी मूल नामों का अनुवाद भी कर लिया जाता है; जैसे wireless telegraphy वेतार का तार, microscope अणुवीक्षण यंत्र, printing press मुद्रणालय, tel- escopc दुखीक्षण यंत्र इत्यादि । भारोपीय भाषाओं की संज्ञायों में लिंग, वचन और कारक की उपस्थिनि श्रावश्यक मानी जाती है और इन्हीं के कारण संज्ञा में रूपांतर