पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२४०

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रूप-विचार २१७ विशिष्ट संबंध की आवश्यकता होती है पर संबंध कारक में किसी प्रकार का संबंध यथेष्ट होता है । अतएव अन्य कारको के लिये भी संबंध की विभक्ति काम देने लगी। इस प्रकार संबंध कारक ने बहुत से कारकों के ऊपर प्रभाव डालकर उनकी सीमा पर अपना प्रभुत्व जमा लिया और रूप की दृष्टि से कारकों की संख्या घट गई। पाली, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में कारकों की संख्या कम हो ? कारक विभक्तियो की उत्पत्ति के विषय में अभी तक निश्चित रूप से कुछ पता नहीं चला है । प्रागैतिहासिक काल से ही ये विभक्तियाँ मूल शब्द के अविच्छिन्न अंग के रूप में विद्यमान हैं। अतएव बहुत उद्योग करने पर भी भाषा-वैज्ञानिक अभी तक उनकी उत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित सिद्धांत नहीं स्थिर कर सके हैं कुछ विद्वानों का अनुमान है कि विभक्तियाँ उन परसों का रूपांतर हैं जो किसी समय स्थान का बोध कराते थे। आज भी जर्मन भाषा में कारकों के दो विभाग किए जाते हैं जिनमें से एक विभाग (अधिकरण और अपादान) का नाम स्थानीय कारक है। कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि विभक्तियाँ शब्दों के विसे रूप हैं । शब्दों के अंतिम भाग के घिसने को अधिक संभावना रहती हैं, अतएव उपसर्गों की अपेक्षा परसों की संख्या सभी भाषाओं में अधिक है । अरवी भाषा में पूर्व-सर्ग और मध्यसर्ग भी पाए जाते हैं। जैसे कतब (= लिखना), तक्त्व (= वह लिखता है); कसव (= लेना), इक्तसब (= उसने अपने लिये प्राप्त किया)। संभवत: यह इत्कसव से ही व्युत्पन्न है। प्राचीन अरबी में उ, इ, असे कर्ता, संबंध और कर्म का बोध होता था, पर उनका लोप हो गया । अत- एवं अरवी भाषा अव कारक-हीन है। कभी कभी विभक्तियाँ शब्द का भाग बन जाती हैं और उनमें नई विभक्तियाँ लगती • हैं। जैसे घर में की चीज, रास्ते में का पत्थर, पेड़ पर का पत्ता इत्यादि।