पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भापा-विज्ञान के अंतर्गत ये दो वातें आती हैं- व्युत्पत्ति-विचार और भाषा के चौद्ध नियमों की मीमांसा । आज व्युत्पत्ति-विचार अथवा निर्वचन एक शास्त्र बन गया है। ऐतिहासिक और ध्वनि-परिवर्तन संबंधी विचारों ने उसे वैज्ञानिक रूप दे दिया है। भापा के बौद्ध नियमों का अनुशीलन भी अब एक सुन्दर विषय बन गया है। किस प्रकार शब्द श्रर्थ को छोड़ता और अपनाता है और किस प्रकार अर्थ शब्द का त्याग और ग्रहण करता है तथा कैसे इन अर्थों का संकोच या विस्तार होता है.. इन सब बातों का अब स्वतंत्र विवेचन होने लगा है। इसी विषय को कुछ लोग अर्थातिशय का नाम भी देते हैं। इस अर्थ-विचार अर्थात् व्युत्पत्ति-शास्त्र तथा अर्थातिशय के आधार पर भापा द्वारा प्राचीन इतिहास और संस्कृति की कल्पना की जाती है। ऐसी भाषामूलक प्राचीन खोज भापा-विज्ञान का एक बड़ा महत्त्वपूर्ण अंग हो गई है। इन मव अंगों का विशेषज्ञों द्वारा पृथक पृथक अध्ययन किया जाता है । पर शास्त्र के सामान्य परिचय के लिये इन सब का साधारण ज्ञान अनिवार्य है भापा-विज्ञान के मुख्य प्रकरण, भाषा को इतिहास, भापा-विज्ञान का इतिहास, भापा का वर्गीकरण, ध्वनि-शिक्षा, धनि-विचार, रूप-विचार, अर्थ-विचार, वाक्य-विचार और भापा-मूलक प्राचीन शोध हैं। अंतिम और सबसे आवश्यक प्रकरण है किसी एक भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन । ये सब मिलकर भाषा-विज्ञान को पूर्ण बनाते हैं। किसी भाषा का अध्ययन दो प्रकार से होता है। एक ऐतिहासिक और दूसरा तुलनात्मक । तुलनात्मक अध्ययन भी अधिकांश में भाषा के वैज्ञानिक एतिहासिक अध्ययन पर ही निर्भर है। जब तक किसी शब्द अनेक प्राचीन और नवीन रूप न प्राप्त हों तब तक उनकी परस्पर तुलना करके किसी निश्चित सिद्धांत पर पहुँचना कठिन है। उदाहरण के लिये हम वेद में "वर्ष" के लिये आए हुए समा, शरद्, हिम, हेमंत, वर्ष आदि शब्द पाते हैं। ये सब शब्द ऋतुवाचक हैं, पर यह पता नहीं चलता था कि श्रीष्म ऋतु-वाची 'समा' शब्द कहाँ से आया ? अन्त में 1 . अध्ययन का प्रकार