पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२५९

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. २३० मापा-विज्ञान दूर जाकर दार्शनिक खोज नहीं करते, पर ऐसा किया जा सकता है और भारत के आपा-वैज्ञानिकों ने शब्द-शक्ति के अध्ययन करने में ऐसा किया भी है। यदि भारतीय दृष्टि से इस अर्थ-विचार का विषय निर्धारित करें तो दो बातें सामने आती हैं। यहाँ पर निरुक्त विद्या और शब्द-शक्ति मीमांसा ऐसे दो विषय थे, पर आजकल के अर्थ-विचार में दोनों का ही एक प्रकार से समावेश हो जाता है । यद्यपि कुछ विद्वान् निर्वचन और व्युत्पत्ति को भी अर्थ-विचार का अंग मानते हैं तथापि अधिक विद्वान केवल उन नियमों और सिद्धांतों को ही अर्थ-विचार का विषय मानते हैं जिनसे अर्थों और अर्थ-विकारों के अध्ययन में हमें सहायता मिलती है। पहले हमें भाषा के बुद्धिनियम और ध्वनिनियम का भेद और बुद्धिनियम और अर्थ-विचार का भेद समझ लेना चाहिए । इन दोनों के विवेक से हमारा विपय सर्वथा स्पष्ट हो जायगा । जिस प्रकार ध्वनि- नियम देश और काल की सीमा के भीतर कार्य करते हैं उसी प्रकार बुद्धिनियम सीमा के भीतर नहीं रहते, वे स्वतंत्र होकर चाहे जितनी भाषाओं तथा कालों में व्यापक रूप से लग बुद्धिनियम और सकते हैं। यदि विचार किया जाय तो नियम ध्वनिनियम अथवा कानून शब्दों का सच्चा अर्थ यहाँ बौद्धिक नियमों में नहीं घटता है क्योंकि ये नियम कोई अपवाद-रहित, सर्व- व्यापी, सदा सत्य निकलनेवाले कानून नहीं होते। 'इन नियमों का अर्थ है कुछ व्यवहारों और व्यापारों में पाए जानेवाले स्थिर संबंध। किसी भी शब्द का जब तक ध्वन्यात्मक विवेचन होता है तब तक हम उसके उच्चारण की ओर देखते हैं--उस शब्द का अमुक भाषा में अमुक काल में ऐसा उच्चारण था और अमुफ शब्द के सबंध कारण अथवा कारणों से उच्चारण में विकार श्राया । इस प्रकार के उच्चारण-विकारों अथवा ध्वनि-विकारों से संबंध (?) Constant relation discovcrablc in a series of phenomena."