पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-विज्ञान शब्दों में थोड़ा अर्थभेद कर लिया जाता है। उदाहरण के लिये, भारत में विदेशियों के आने से देशी भाषाओं में विदेशी शब्द बढ़े। मुसलमानों और अगरेजों के साथ फारसी, अस्वी और अँगरेजी के शब्द खूब वढ़े। पर आज उन सब शब्दों के अर्थ में पूरा भेद किया जाता है। समाज में पर्यायवाची शब्द तो कभी चलते ही नहीं। यदि एक शब्द के आगे बढ़ने पर दूसरा मरता नहीं, तो उसके अर्थ में कुछ न कुछ आंशिक भेद तो अवश्य ही कर लिया जाता है । डाक्टर, वैद्य, हकीम और कविराज चारों ही पर्यायवाची शब्द हैं, पर हिंदी में चारों के अर्थ में स्पष्ट भेद हो गया है। डाक्टर से एलोपैथी, होमोपैथी, अथवा प्रकृति-चिकित्सा के समान किसी आधुनिक प्रणाली के चिकित्सक का अर्थ लिया जाता है; वैद्य से सीधे आयुर्वेद जाननेवाले देशी चिकित्सक का बोध होता है; हकीम से यूनानी चिकित्सावाले का अथवा किसी मुसलमान चिकित्सक का अभिप्राय निकलता है और कविराज का अर्थ होता है बंगाली चिकि- त्सक कोई भी अँगरेजी का वक्ता इन चारों को डाक्टर, कह सकता है, उर्दूवाला चारों को हकीम कह सकता है, वंगाली · कविराज से सब का बोध करा सकता है और संस्कृत-भाषी तो सबको वैद्य कहता ही है, पर आज हिंदी में चारों भाषाओं के शब्द आ गए हैं। इसी से यह भेदीकरण का नियम चला है। इसी प्रकार पाठशाला, मदरसा और स्कूल शब्दों में भी कैसा भेद देख पड़ता है। पाठशाला संस्कृत से संबंध रखती है, मदरसा उर्दू-फारसी से और स्कूल हिंदी-अंगरेजी से कभी कभी तो एक ही भाषा से श्राए पर्यायवाची शब्दों में भी बड़ा भेद हो जाता है। पाठशाला, विद्यालय, विद्यापीठ, सरस्वती-भवन श्रादि हिंदी में संस्कृत से ही आए हैं, पर आज विद्यापीठ का नाम लेते ही श्रोता को राष्ट्रीय विद्यापीठ, महिला विद्यापीठ आदि के समान आधुनिक ढंग की संस्था का ध्यान आ जाता है, विद्यालय और सरस्वती-भवन से प्रायः संस्कृत की ही उच्च शिक्षा देनेवाली संस्थाओं का बोध होता है। पाठशाला शब्द बड़ा व्यापक हो गया है, वह सभी का बोध कराता है इस प्रकार यद्यपि कन्या पाठशाला, कुमार पाठशाला, संस्कृत पाठशाला । !