पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२७

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भापा-विज्ञान विज्ञान विज्ञान है या कला, इस पर यूरोप के विद्वानों ने बहुत कुछ विचार किया है और अंत में यही सिद्धांत निकाला है कि यह विज्ञान है, कला नहीं है; क्योंकि भाषा भी वास्तव में एक ईश्वरदत्त शक्ति है और उसका प्रारंभ तथा विकास आदि भी प्राकृतिक रूप में ही होता है; मनुष्य अपनी शक्ति से और जान-बूझकर कदाचित् ही उसमें कोई परिवर्तन कर सकता है। यदि इस संबंध में यह कुछ कर भी सकता है तो एक तो वह प्रायः नहीं के बराबर होता है, और दूसरे जो कुछ हो भी सकता है, वह व्यक्तिगत प्रयल से नहीं वरन् सामूहिक या सामाजिक रूप से होता है, और जो काम सामूहिक या सामाजिक रूप से हो, वह प्रायः प्राकृतिक के समान ही माना जाता है। इसके अतिरिक्त भापा- विज्ञान में विज्ञान के और भी लक्षण पाए जाते हैं। इन्हीं कारणों से इसकी गणना कला में नहीं, विज्ञान में होती है। हम कह चुके हैं कि भापा-विज्ञान और व्याकरण का घनिष्ट संबंध है। व्याकरण एक कला है और भापा-विज्ञान एक विज्ञान । व्याकरण भाषा-विज्ञान और भाषा में साधुता और असाधुता का विचार करता है, और भाषाविज्ञान भाषा की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। व्याकरण दो प्रकार का होता है. वर्णनात्मक और व्याख्यात्मक । वर्णनात्मक व्याकरण लक्ष्यों का व्यवस्थित रूप में वर्गीकरण करता है और सामान्य नियमों का निर्माण करता है। व्याख्यात्मक व्याकरण इसका भाष्य करता है। यह भाषामात्र की प्रवृत्तियों की व्याख्या करता है। इसके भी तीन अंग होते हैं--ऐतिहासिक, तुलनात्मक और सामान्य व्याकरण । ऐतिहासिक व्याकरण भाषा के कार्यों को समझाने के लिये उसी भाषा में या उसकी पूर्ववर्ती भाषा में उसके कारणों के ढूँढ़ने की चेष्टा करता है, तुलनात्मक व्याकरण उसके कार्यों की व्याख्या के लिये उस भापा की समकालीन था उसको पूर्वज सजातीय भाषाओं की तुलनात्मक परीक्षा करता है और सामान्य व्याकरण सभी भाषाओं के भापा-मान के- मौलिक सिद्धांतों तथा तत्त्वों की मीमांसा करता है। यद्यपि यह सत्य व्याकरण