पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२७२

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अर्थ-विचार २४३ बहुवचन की विभक्ति नहीं है, पर जब उसमें बहुवचन का भ्रम हुआ तो लोगों ने उसमें से दो अंश निकाले-आक्स (एकवचन का रूप ) और 'अन ( en) बहुवचन का प्रत्यय । इस प्रकार यह भ्रम भी उत्पादक सिद्ध हुआ। (अँगरेजी का मोर ( more) शब्द तुलनावाचक समझा जाता वास्तव में ऐसी बात नहीं है पर भ्रम होने का ही यह फल है कि भो' ( mo ) के समान प्रकृति की कल्पना की जाती है और उससे मोस्ट ( most ) रूप भी बनाया जाता है। इसी प्रकार चेरीज, पीज आदि शब्द पहले एकवचन थे पर भ्रम से वे बहुवचन मान लिए गए । इसी से अब वेरी और पी ये एकवचन बन गए हैं और 'ज' बहुवचन का चिह्न माना जाने लगा है। सिंग (Sing) सैंग ( Sang) संग (Sung ) के समान रूपों में जो हार-वैपम्य है वह आजकल का द्योतक माना जाता है। वास्तव में ऐसा भ्रम से ही हुआ है । पहले स्वर और वल कारण ही ऐसे रूप वन गए थे पर अव उनमें व्याकरण- वाली द्योतकता आ गई है। इस प्रकार मिथ्या प्रतीति वहुत कुछ उत्पन्न कर डालती है।। कभी कभी जहाँ विभक्ति अथवा प्रत्यय रहते हैं उन पर ध्यान न जाने से एक दूसरे प्रकार की भ्रांति (या मिथ्या प्रतीति) होती है। जैसे मैंने, विधान ने, अभी भी इत्यादि दुहरे प्रत्यय लगे हैं। 'काबुल- वाला' के स्थान पर काबुलीवाला' और 'विविध' के स्थान पर विविध प्रकार का प्रचलन भी इसी भ्रांति के कारण हुआ है। गुलमेहँदी का फूल'. 'गुलरोगन का तेल' 'दर असल में आदि प्रयोग भी ध्यान देने योग्य है। मनुष्य अनुकरणप्रिय होता है। यदि उसे शब्द वनाना पड़ता है तो वह किसी एक चलते शब्द के अनुकरण पर नया शब्द गढ़ लेता है। ६. उपमान का नियम वह उचित नियमों की चिंता नहीं करता । अल ने लिखा है कि इस प्रकार उपमान का अनुकरण भाषा में बहुत काम करता है । मुख्यत: चार वातों में उपमान का विशेष प्रयोग होता है--