पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२८०

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अर्थ-विचार २५१ 'मुग्ध' शब्द संस्कृत में सुंदर अथवा मूढ अर्थ देता था। (मुग्धस्तु सुंदरे मूढे ); पर अब हिंदी और बगला के मुग्ध में अच्छाई अच्छाई ही रह गई है, बुराई तनिक सी भी नहीं है। हिंदी में मुग्ध होने का अर्थ कितना उत्कृष्ट है। कभी एक शब्द का अमूर्त अर्थ मूर्त हो जाता है अर्थात् वह शब्द क्रिया, गुण अथवा भाव का बोधक न होकर किसी द्रव्य का वाचक हो जाता है, और कभी इसके विपरीत मूर्ति का ४ अर्थ का मूर्ती- अर्थ अमूर्त बन जाता है। देवता और जनता करण तथा अभूर्तीकरण पहले प्रकार के उदाहरण हैं । जनता (जनता) और देवता ( देव+ता) पहले भाववाचक थे पर पीछे उनका मूर्त अर्थ हो गया । अव संस्कृत और हिंदी दोनों ही में इनका भाववाचक अर्थ भूल गया है। इसी प्रकार जाति (= जन्म ) और संतति (लगा- तार बढ़ते जाना, विस्तार ) भी अमूर्त अर्थ के वाचक थे पर पीछे से ब्राह्मण जाति और तीन संतति आदि में मूर्त अर्थ आ गया। हिंदी के मिठाई और खटाई भाववाचक शब्द हैं पर पीछे से वे द्रव्य-वाचक हो गए। दूसरे प्रकार की प्रक्रिया अर्थात् अमूर्त से मूर्त होने के उदाहरण हैं. कपाल और हृदय । ये दोनों शब्द मूर्त अंगों के वाचक थे। पर अब उनका लक्षणिक प्रयोग भाग्य और भाबुकता के अर्थ में होने लगा है। इसी प्रकार बड़ी छाती, वड़ा कलेना आदि में भी साहस, दृढ़ता आदि के अर्थ आ गए हैं। खट्टा, मीठा, तीता आदि गुणवाचक शब्द हैं पर इनका प्रयोग द्रव्यवाचक के समान होता है, जैसे मुझे खट्टा मीठा और तीता तो सदा के लिये मना है। शयन ( बिछौना), भवन (घर), वसन ( कपड़ा) आदि शब्द आज द्रव्यवाचक हैं पर पहले ये भाववाचक थे। अनट प्रत्यय से बने भाववाचक शब्दों का मूर्तीकरण बहुत मिलता है। प्रायः जव शब्द उत्पन्न होते हैं, उनमें बड़ी शक्ति होती है, उनका अर्थ भी बड़ा सामान्य और व्यापक होता है, पर दुनिया के व्यापारों