पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२८६

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अर्थ-विचार २५५ ( सामान्य भाव और विशेष भाव ) । उपचार दोनों ही अवस्थाओं में काम करता है। सच पूछा जाय तो सभी अर्थ-विकार उपचार के अंतर्गत आ जाते हैं और पीछे जो उदाहरण आए हैं वे भी उपचार के ही उदाहरण हैं। उपचार और संसर्ग-इन्हीं दो की व्याख्या में पूरा अर्थ-विचार आ जाता है तो भी हम यहाँ कुछ ऐसे उदाहरण चुनेंगे जो पिछले कार्यों में न आए हों। मुख्यार्थ बोध होने पर और देश, काल अथवा अन्य किसी कारण से संबद्ध होने पर ही उपचार की क्रिया होती है। उपचार के उदाहरण तो सभी साहित्य के विद्यार्थी जानते हैं। किसे लाक्षणिक प्रयोगों के उदा- हरण न मालूम होंगे ? अत: हम दो ही चार उदाहरण देंगे। (१) चोटी और दादी का मेल होना कठिन है क्योंकि अब धर्म ही नहीं इसमें राजनीति भी घुस पड़ी है। यहाँ चोटी से हिंदू और दाढ़ी से मुसलमान का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार एक अंग से पूरे अंगी का ग्रहण हुआ है। (२) लेखक और रचयिता के नाम से ही उसकी सारी कृतियों का बोध हो जाता है। हिंदी के विद्यार्थी को बंकिम, नवीन, रवींद्र, शरद आदि को पढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना भारतेंदु, प्रसाद और मैथिलीशरण को। (३) विशेष ध्यान में आनेवाला बाह्य लक्षण भी कभी कभी पूरी वस्तु के लिये उपचरित होता है । जैसे, हम लाल पगड़ी से सिपाही का और सफेद पगड़ी से पारसी लोगों के पुरोहित का अर्थ लेते हैं। (४) कभी कभी जिस चीज से वह वस्तु बनी रहती है उसी का नाम चल पड़ता है, जैसे तार से अव केवल द्रव्य का ही नहीं, उस प्रकार समाचार भेजने का अर्थ लिया जाता है (५) कुछ शब्दों में भ्रम के कारण भी उपचार होता है, जैसे संस्कृत के अवकाश से हिंदी और बँगला में विश्राम समय का बोध होने लगा