पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२९३

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भाषा-विज्ञान कई वाक्यों में श्रन्वय देखकर व्यतिरेक द्वारा उसका भी संकेत समझ लेता है। अब संत ज्ञान हो जाने से वे ही शब्द उसे अर्थ का बोध कराने लगते हैं। वालक की भाषा सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान देने से संकेत आन की बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। एक सयाना आदमी कहता है-'गाय लायो' । दूसरा उसके आज्ञानुसार व्यवदार द्वारा संकेत-ग्रह गाय पाता है। बालक यह सब देख-सुनकर उस वाक्य का अर्थ समझ जाता है। आगे चलकर 'गाय बाँधो घोड़ा लानो' श्रादि वाक्य भी वह अपने बड़े-बूढ़ों के व्यवहार को देखकर सम- झने लगता है। तब कहीं उसकी अन्वय व्यतिरेक द्वाग सोचने की सहज प्रवृत्ति 'गाय' और 'लायो' का अवयवार्थ समझा देती है। पहले वालक व्यवहार से पूरे वाक्य का अर्थ समझता है । फिर धीरे धीरे व्यवहार से ही बद अलग अलग शकों का अर्थ समझने लगता है, अर्थात् उस इस बात का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि किस शमः का किस अग्रे में संकेत है। जय बालक व्यवहार से कुछ शब्द समझने लगता है, गुरुजन उसे बहुत से शब्द व्यवहार बाहर के भी समझा देते हैं। वह उन्हें चुर- सरे, अन्य गत मालक चाप मान लेता है। प्राप्त पुस्प बच्चे को एक पदार्थ दिखाना है और कहता है यह पुस्तक है। पानक, इस शब्द के संकेत की माटपट समझ जाता है। प्राग चलकर बालक व्याकरण पढ़ना है; प्रकृति, प्रत्यय श्रादि का ज्ञान अर्जन करता है। अनेक शब्दों को तथा शन्दों के अनेक रूपों को महज की समझने गगना है । यशों का अर्थ या, उपमान के यन से लगा लेना है। गाय पाचानता है वो 'गवय' की बात सुनकर उसको गाय जैगा एक पशु ममत, लगा है। क. मनुष्य का अर्थ व्यवहार में मोप युका है। इन उपमान नी मायना में यात्र, या अादि योनियों की भी कल्पना पर का! देव माल प्रारश्रार 'यादि अनेक पर्याय या: फोरम गरन मंदाने पर या वाक्य-शेप से मंका निर्णय