पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२९४

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अर्थ-विचार २६३ करता है। गंगा शब्द का संकेत नदी और लड़की दोनों में है, पर जब इस शब्द का वाक्य में प्रयोग होता है तब दूसरे शब्दों से इसका भी श्रथे स्पष्ट हो जाता है। गंगा की धारा में आज कितना वेग है,- इस वाक्य का गंगा शब्द स्पष्टतया नदी वाचक है। 'थव' का अर्थ 'जव' भी होता है और 'कंगुनी' का चावल भी। वाक्यशेष अर्थात् प्रसंग से इसका भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। आर्य लोगों के प्रसंग में यव का अथे 'जब होता है, पर म्लेच्छ लोग 'यब' से कंगुनी का चावल समझते हैं। कुछ शब्द समझे हुए शब्दों के साथ आने से अनायास ही समझ में आ जाते हैं। जैसे 'वसंते पिक: कूजति'-वसंत में पिक बोल रही है- इस वाक्य में पिक शब्द दूसरी भाषा का है पर पाठक 'वसंत में बोलती है-इतना अर्थ समझ लेने पर पिक शब्द का भी अर्थ लगा लेता है । 'मधुप कमल पर मंडरा रहे हैं। इस वाक्य के 'मधुप' शब्द को कमल आदि शब्दो को समझनेवाला सहज ही समझ लेता है। इस प्रकार सिद्ध पदों की सन्निधि से बालक बहुत से शब्दों का संकेत-ज्ञान कर लेता है। इतने पर भी जो शब्द समझ में नहीं आते उन्हें स्पष्ट करने के लिये वह विवृति की सहायता लेता है। व्याख्या देशी-विदेशी सभी भाषाओं के शब्द स्पष्ट कर देती है। यदि चालक रसाल शब्द नहीं समझता तो शिक्षक या तो रसाल के रूप-रंग की व्याख्या करके उसका अर्थ समझा देता है अथवा रसाल का ऐसा पर्यायवाची शब्द क्ताता है जो विद्यार्थी को पहले से ज्ञात हो। उसी भाषा में अथवा दूसरी परिचित भाषा में अनुवाद करके समझाने का ही नाम विवृति है। विचार करने पर अन्य सभी संकेत के ग्राहक व्यवहार में अंतर्भूत हो जाते हैं। व्यवहार से बालक सभी शब्द सीख सकता है; पर अपनी (१) 'पिक' शब्द संस्कृत में दूसरी भाषा से पाया है। ऐसे अन्य शब्दा का भी मीमांसा-सूत्र के शावरभाग्य में उल्लेख मिलता है।