पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२९५

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व्यवहार नकेत- भाषा-विज्ञान आँखों से देखने सुनने में बड़ा समय लगता है। थोड़े वर्षों का छोटा सा जीवन संसार की असंख्य वस्तुओं का कैसे अनुभव कर सकता है ? इसी से ऐसे उपायों से काम लेना पड़ता ग्राहकों में प्रधान है जिनसे अधिक से अधिक शब्द कम से कम समय में सीखे जा सकें। कोप, व्याकरण, उपमान श्रामोपदेश, वाक्य-शेप, विकृति, सन्निधि ये सातों संकेत के ग्राहक ऐसे ही उपाय है । यद्यपि व्यवहार संकेत के ग्राहकों में शिरोमणि है तथापि इन अन्य उपायों का भी संकेत-ग्रह के लिये कम महत्त्व नहीं । इस प्रकार इन व्यवहारादि-ग्राहकों द्वारा संकेत का ज्ञान हो जाने पर ही शान बोध होता है अर्थात् संकेत की सहायता से ही शब्द द्वारा अर्थ- बोध होता है। अत: प्रत्येक अर्थ में संकेत का होना स्त्रयसिद्ध सा । किनी में साक्षात् संकेत रहता है और किसी में असाक्षात् संकेत जिन 'अर्थ से जिस शब्द का संबंध लोगों में प्रसिद्ध है उस अर्थ में उस शब्द का नोया नाज्ञान संकेत रहता है। जैस 'बैल', गाड़ी खींच रहा है. इन वाक्य में बैल शमः का पर्थ में साक्षात् संकेत है। पर जब कभी कोई शब्द प्रयोजन-वश किसी अप्रसिद्ध अथ से संबंध द लेता, उनका संयन साक्षात् नहीं रह जाता। उलगता तागक प्रनिद्ध अर्थ में संकन रहता है. अतः दूसरे अर्थ में उनका मन इस प्रमिङ्क अर्थ की परंपरा में से होकर पाता है। जैसे यह एका चलन वाक्य में बैल शब्द का संकन येल' में नोकर क्षेत्र के माश्य में है। अल शब्द का संकेत मुग्ध अर्थ में होकर दूसरे गण में पलना है। "न; वैग शब्द का 'पशु' में मावासका प्रार मगर अयं में प्रमाणाना। साक्षात्मकतिन अगल शब्द को गाना मानसमे पाले मायका बैल शत्र वायक, सनर बास्य माना नानक काजिम गति के द्वागतापने अर्थमा बोच गावमेनिया की। मानसमा अन्योल दम प्रश्न को समनने के गिरान पति मन स्या मंकन का