पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२९७

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1 3 . २६६ भाप-विज्ञान मानते हैं । मीमांसकों की नाई वे ध्वनि और वर्ण को नित्य नहीं माननं । व्यवहार से ही ध्वन्यात्मक शब्द की अनित्यता स्पष्ट है। शब्द के नाद और रूप में लोप, आगम, विपर्यय, विकार आदि कार्य प्रत्यक्ष देख पड़ते हैं संकेत वाचक शब्द और उसकी शक्ति अभिधा-दोनों का स्वरूप स्पष्ट कर देता है। जव संकेत सीधे समझ में आ जाय तब शब्द को वाचक, उसके अर्थ को वाच्य और उस शन्द अभिधा के तीन भेद के अर्थ-बोध करानेवाले व्यापार को अभिया कहते हैं । अभिया शक्ति के तीन सामान्य भेद होते हैं रूढ़ि, योग और योगरूढ़ि। इसी शक्ति-भेद के अनुसार शब्द और अर्थ भी रूद, यौगिक अथवा योगरूढ़ होते हैं । मणि, नूपुर, गौ, हरिण आदि शब्द, जिनकी व्युत्पत्ति नहीं हो सकती रूढ़ कहलाते हैं । इन शब्दों में रूढ़ि की शक्ति व्यापार करती है । और जिन शब्दों की शास्त्रीय प्रक्रिया द्वारा व्युत्पत्ति की जा सकती है वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे पाचक, सेवक आदि शब्द यौगिक हैं; क्योंकि उनकी व्युत्पत्ति हो सकती है। कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनकी व्युत्पत्ति तो की जाती है पर व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ शव के मुख्य अर्थ से मेल नहीं खाता। ऐसे शब्द योगरूढ़ कहे जाते हैं। पंकज का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है 'पंक से उत्पन्न होनेवाला' । पर अब यह शब्द एक विशेष अर्थ में रूढ़ हो गया है। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से तो केवल धातुएँ ही रूद कही जा सकती हैं । धातु के अतिरिक्त अन्य शब्दों को रूढ़ मानना अज्ञान की स्वीकृति मात्र है। सभी शब्द की उत्पत्ति धातु और प्रत्यय के योग से होती है। जिन शब्दों की उत्पत्ति अज्ञात रहती है उन्हें व्यवहारानुरोध से रूढ़ मान लिया जाता है। वास्तव में वे 'अव्यक्तयोग' मात्र हैं, उनके योगार्थ का हमें ज्ञान नहीं है । अत: धातु में हम शब्द की निर्याग और रूढ़ अवस्था का दर्शन करते हैं । दूसरी अवस्था में धातु से प्रत्यय का योग होता है और यौगिक शब्द सामने आना है। संस्कृत व्याकरण की