पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२९८

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अर्थ-विचार २६७ पाँचों वृत्तियाँ इस अवस्था का सुंदर निदर्शन कराती हैं। पहले धातु से कृत प्रत्यय लगता है जैसे पच नातु से पाचक बनता है। फिर धातुज शब्द से तद्धित प्रत्यय लगता है तो पाचकता आदि शब्द बन जाते हैं इन दोनों प्रकार के यौगिक शब्दों से समास बन जाते हैं। एक यौगिक शब्द दूनरे योगिक शब्द से मिलकर एक समस्त (योगिक ) शब्द को जन्म देता है । कभी कभी दो शब्द इतने अधिक मिल जाते हैं कि उनमें से एक अपना अस्तित्व ही खो बैठता है। शब्द की इस वृत्ति को एकशेष कहते हैं। जैसे माता और पिता का योग होकर एक यौगिक शब्द बनता है पितरौ' इन चार वृत्तियों से नाम-शब्द ही बनते हैं। पर कभी कभी नाम के योग से धातुएँ भी बनती हैं। जैसे पाचक से पाचकायते व. ता है ऐसी योगज धातुएँ नामधातु कहलाती हैं और उनकी वृत्ति 'धातुवृत्ति' कहलाती है। विचारपूर्वक देखा जाय तो भापा के सभी यौगिक शब्द पाँच वृत्तियों के अतर्गत आ जाते हैं । कृदंत, तद्धितांत, समास, एकशेष और नामधातुओं को निकाल लेने पर भाषा में केवल दो ही प्रकार के शब्द शेष रह जाते हैं धातु और प्रातिपदिक (अव्युत्पन्न रूढ़ शब्द)। इस प्रकार भापारूद्ध और यौगिक इन्हीं दो प्रकार के शब्दों से बनती है, पर अतिशय की दृष्टि से एक प्रकार के शब्द ऐसे होते हैं जो यौगिक होते हुए भी रूढ़ हो जाते हैं ऐसे शब्द योगरूड़ कहे जाते हैं। यह शब्द की तीलरी अवस्था है। जैसे धवलगृह का अर्थ होता है 'सफे.ी किया हुआ घर'; पर धीरे धीरे धवलाह का प्रयोगातिशय से-'महल' अर्थ होने लगा। इस अवस्था में धवलगृह योगरूढ़ शब्द है । धवलः गृहः और धवलगृह का अब पर्याय जैसा व्यवहार नहीं हो सकता । यही यागरूढ़ि संस्कृत के नित्य समासों का मूल कारण है। कृष्णसर्पः है तो यौगिक शब्द; पर धीरे धीरे उसका संकेत एक सर्प-विशेष रूढ़ हो गया है। अतः वह समस्तावस्था में ही उस विशेप अर्थ (१) 'वृत्ति' व्याकरण में किसी भी ऐसी यौगिक रचना को कहते हैं जिसका विग्रह किया जा सके।