पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काल के १४ भापा-विज्ञान है। भापा पर राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है। अपभ्रंश को देशव्यापी बनाने का प्रधान कारण आमीरों का राजनीतिक प्रभुत्व था। शकों और हूणों तथा मुसलमानों और यूरोपियनों के आगमन एवं संसर्ग का प्रभात्र यहाँ की भाषा और व्याकरण पर स्पष्ट है। देशों की भौगोलिक स्थिति से भी भापा का बहुत अधिक संबंध है, यहाँ तक कि जल-वायु का भी भाषा पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है। किसी देश के लोग 'द' का उचारण नहीं कर सकते तो कहीं के लोगों के मुँह से 'त' ही नहीं निकलता। फारस और अरबवाले जो ऐन शैन ' और 'काफ' बोलते हैं वह अकारण नहीं है। इसका कारण कुछ तो वहाँ की भौगोलिक स्थिति और कुछ वहाँ की दूसरी परिस्थितियाँ हैं। समय पाकर लोग अनेक पुराने उच्चारण भूल जाते और नये उच्चारण करने लगते हैं । प्राचीन ऋ, ऋ, लू और ॐ का उच्चारण अव लोग भूल से गए हैं। 'ज्ञ' के उच्चारण में भिन्न भिन्न प्रांतों में बहुत कुछ अंतर देखने में आता है। ये सब परिवर्तन अनेक भिन्न भिन्न कारणों से होते हैं, और जिन जिन विज्ञानों में उन कारणों का विवेचन होता है, उन सब विद्वानों के साथ भाषा-विज्ञान का कुछ न कुछ संबंध रहता है । कदाचित् यहाँ यह बताने की आवश्यकता नहीं कि भापा-विज्ञान के लिये अनेक भाषाओं के ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। भाषा-विज्ञान ने जातियों के प्राचीन इतिहास अर्थात् उनकी सभ्यता के विकास का इतिवृत्त उपस्थित करने में बड़ी अमूल्य सहायता दी है। पुरातत्त्व तो प्राप्त भौतिक पदार्थों अथवा उनके अवशेषांशों के आधार पर ही केवल प्राचीन समय का इतिहास उपस्थित करता है, प्राचीन जातियों के मानसिक विकास का व्योरा देने में वह असमर्थ है। भाषा-विज्ञान इस अभाव की पूर्ति करता है। मानसिक भावों या विचारों-संबंधी शब्दों में उनका पूरा पूरा इतिहास भरा पड़ा है; और उसके आधार पर हम यह जान सकते कि प्राचीन समय में किस जाति के विचार कैसे थे; वे ईश्वर और आत्मा आदि के संबंध में क्या