पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-विज्ञान पच कौड़ी, दमड़ी, छ कौड़ी, आदि नाम भी पाए जाते हैं। शैशवावस्था में जब किसी का नाम नन्हें, छोटू या बच्चन पड़ जाता है तो बुढ़ापे तक वही चला जाता है। राम का नाम लोगों को इतना प्यारा है कि कुछ अर्थ न हो तो भी नाम के पूर्व राम जोड़ देते हैं, जैसे रामचीज, रामवृक्ष, रामसुमेर इत्यादि। कभी कभी दो भापाओं के शब्दों का समास होकर नाम बनता है। जैसे रामबक्स (वख्रा) संत- वक्स इत्यादि। कभी कभी पुल्लिंग नाम का संक्षिप्त रूप स्त्रीलिंग हो जाता है; जैसे राधाकृष्ण का राधे, श्यामाचरण का श्यामा, उमाशंकर का उमा, रमाकांत का रमा, लक्ष्मीशंकर का लक्ष्मी, नलिनीमोहन का नलिनी इत्यादि। भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतो के नाम लिखने की विभिन्न प्रथा है। उत्तरी भारत में प्रायः सर्वत्र अपना नाम और पास्पद लिखने की प्रथा है। जैसे रामप्रसाद सिंह, कृष्णचन्द्र शुक्ल, श्यामापति पांडेय, सत्यदेव उपाध्याय इत्यादि । शर्मा से ब्राह्मण-मात्र और वर्मा से क्षत्रियमात्र का बोध होता है। कभी कभी आस्पद न लिखकर जात्ति लिखते हैं। जैसे दुर्गाप्रसाद खत्री, रामसुमेर तेली, रामसुख कोइरी इत्यादि । कोई कोई नाम के साथ अपने पुरुषाओं का पेशा लिखते हैं। जैसे मोहनलाल सर्राफ, रविशंकर जौहरी, हरिनारायण चौधरी इत्यादि । युक्तमान्त में और विहार में कभी कभी केवल नाम ही लिखते हैं, जिससे उनकी जाति या कुल का पता नहीं लग सकता । जैसे रामकिशोर, रामदास, सोहनलाल, सुखदेव इत्यादि । काश्मीरियों के प्रास्पद सुनने में विचित्र से लगते हैं। जैसे कुंजरू, गुटू, टकरू, काटजू, कौल, मुल्ला, दर, तनखा इत्यादि। इसी प्रकार मारवाड़ियों के नाम भी, जो प्राय: जन्मस्थान के नाम पर पड़ते हैं, सुनने में कुछ अद्भुत से जान पड़ते हैं। जैसे मुंझुनवाला, बिड़ला, चमरिया इत्यादि । खत्रियों में भी ककड़, मेहरा, मेहरोत्रा, टंडन आदि आस्पद पाए जाते हैं।