पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१४

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अर्थ-विचार २८३ गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों का नाम अपेक्षाकृत अधिक पूर्ण रहता है। उनके नाम से उनके विषय में अनेक बातें विदित हो जाती हैं। इन प्रांतों में प्राय: सर्वत्र अपना नाम, पिता का नाम और आस्पद लिखते हैं । जैसे बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविंद रानडे इत्यादि । कभी कभी श्रास्पद न लिखकर गाँव के नाम में 'कर' लगाकर लिखते हैं । जैसे महादेव गोरिद कानिटकर, रामनाथ पंढरीनाथ दांडेकर इत्यादि । पारसी लोग एक सीढ़ी और भी बढ़े हुए हैं। उनके यहाँ अपना नाम, पिता का नाम, पितामह का नाम और गाँव का नाम सब कुछ एक साथ लिखते हैं। जैसे आई.जे. एस. तारापुरवाला । मद्रास में स्थान का नाम सबसे पहले रखते हैं। जैसे तांजोर माधोराय, चित्तर शंकरन नायर । स्थानों के नाम प्राय: किसी न किसी कारण से पड़ते हैं । वरुणा और अस्सी के बीच में बसने के कारण काशी का नाम वाराणसी या बनारस पड़ा। कभी कभी गाँव या नगर वसानेवाले के नाम पर अथवा किसी की स्मृति में उसके नाम पर किसी गाँव या नगर का नाम पड़ जाता है. सुंदरपुर, केशवपुर, नारायणपुर, गोरखपुर, यादवेंद्रनगर, शाहजहांनाबाद, अकबराबाद, इत्यादि । युक्त-प्रांत में 'पुर' वाले गाँव था नगर बहुत पाए जाते हैं। मुसलमानों के बसाए हुए नगरों के अंत में 'आवाद पाया जाता है। कभी कभी पुर, गंज या गड़ भी पाया जाता है । शाहगंज, शाहपुर, अकवरपुर, आजमगढ़ । अँगरेजों के नाम पर भी 'गंज' वाले स्थान पाए जाते हैं। जैसे राबर्टगंज, कर्नलगंज । कभी कभी विदेशियों के नाम अपनी भाषा के उच्चारण के अनुरूप बना लिए जाते हैं । जैसे Macdonell से मुग्धानल इत्यादि । इमो प्रकार ठाकुर से टैगोर, चसु से वोल, सिंह से सिनहा इत्यादि हो गए हैं। यह विपय बड़ा रोचक और स्वतंत्ररूप से अनुसंधान करने के योग्य है । संसार के समस्त देशों और जातियों के नामों का इतिहास सचमुच एक मनोरंजक वस्तु होगी। .