पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतीय लिपियों का विकास २८७ युक्तियाँ उपस्थित की जाती हैं जिन पर किसी प्रकार विश्वास नहीं किया जा सकता, जो एकदम भ्रांत है। उदाहरण के लिए ब्राह्मो लिपि की सेमेटिक उत्पत्ति का एक मुख्य 1. तर्क यह दिया जाता है कि प्रारंभ में ब्राह्मी लिपि भी सेमेटिक लिपियों की ही भाँति दाहिने से वाएँ लिखी जाती थी ब्राझी लिपि की सेमे- और कुछ समय पश्चात् वह दाहिनी ओर से टिक उत्पत्ति का खंडन बाई लिखी जाने लगी। इसका एक-मान मुख्य प्रमाण एरण का सिका है जिसमें ब्राह्मी अक्षर वाहिनी ओर से वाई ओर को पढ़े जाते हैं। किंतु यह तो स्पष्टत: सिक्के की मुहर खुदाई की गलती है, जैसा कि भारतीय सिकों में अनेक बार पाई गई है । मुहर बनाने में अक्षो को उल्टे क्रम से लिखना भूल आने पर यह त्रुटि प्रायः रह जाती है। भारतीय ही नहीं विदेशी सिकों में भी, प्राचीन ही नहीं नरीन सिकों में भी यह स्वाभाविक त्रुटि अनेक चार पाई गई है । अतः या सेरिट से अनुकत नरें। बूलर ने ब्राह्मी लिपि को विदेशी सेमेटिक लिपि की अनुकृति बताते हुए जो पुस्तक लिखी है, उसे देखने पर प्रकट होता है कि उनके तर्क, योजनाएं और युक्तियाँ एकदम संदेहास्पद हैं और प्रामाणिकता से वहुत दूर है। वेबर और वूलर पहले यह निष्कर्ष बना लेते हैं कि ब्राह्मी लिपि विदेशी श्रनुकरण है, फिर उसे सिद्ध करने के लिये तो यह निष्कर्ष नि पदसिस की योजना करते हैं,। ऐसा करने में उनसे अन्याय की ही अाशा की जा सकती है । बूलर ने फिनिशियन अक्षरों से ब्राह्मी की उत्पत्ति सिद्ध करते हुए दो मोटी बातों का ध्यान नहीं रक्खा । एक तो उन्होंने समान उच्चारणवाले अक्षरों का आधार न रखकर असमान उचारण- वाले अक्षरों को भी अनुकरण का मूल मान लिया है, जो संभव नहीं है, अथवा अत्यंत संदिग्ध है। अनुकरण समान उच्चारण के आधार पर ही हो सकता है, अन्य किसी आधार पर नहीं और फिर उसने इन दोनों लिपियों के इस मौलिक भेद का ध्यान नहीं रक्खा कि सेमेटिक अक्षरों का ऊपरी भाग मोटा और नीचे का भाग महीन या