पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३२८

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प्रागैतिहासिक खोज रूप धारण कर लिया। सारांश यह है कि आरंभ में एकता थी। समय पाकर आपस में भेद पड़ गया और साधारणत: अलग स्थिति हो गई । पर भापा-विज्ञान में इस अलग स्थिति की दीवार को तोड़कर आपस की प्रारंभिक एकता का रूप प्रत्यक्ष दिखा दिया है। हमारा संबंध आर्य भापात्रों से है, अतएव हमें यही जानना है कि प्रार्थ भाषाओं की मूल भाषा बोलनेवाले कौन लोग थे, वे यहाँ रहते थे, उनमें आपस में क्यों वियोग हुआ और उनकी भाषा की इस समय कितनी मुख्य मुख्य शाखाएं हैं। आर्य जाति का मूल निवासस्थान कहाँ था ? इस प्रश्न पर सबसे प्रथम प्रकाश डालने का श्रेय प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् मैक्समूलर को है। मैक्समूलर ने इस प्रश्न पर विद्वत्तापूर्वक विचार करके मध्य एशियाई सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनका कथन है कि सर्वप्रथम श्रा लोग मध्य एशिया में निवास करते थे और कालांतर में वहीं से पूर्व तथा पश्चिम की ओर फैले । मैक्समूलर के पश्चात् अन्य विद्वानों का ध्यान भी इधर आकर्षित हुआ। आर्यों के मूल निवासस्थान के विषय में भिन्न भिन्न मत प्रचलित हुए। डा० लैथन ने पार्यों को स्कैंडिनेविया का मूलनिवासी बतलाया, एवं अन्य विद्वानों ने वाल्टिक सागर के दक्षिण-पूर्व तट, जर्मनी के विभिन्न भाग तथा यूरोप के भिन्न भिन्न प्रान्तों को आयों का संभाव्य वासस्थान निर्दिष्ट किया । सब से अधिक मान्य सिद्धांत डाक्टर श्रो० श्रेडर का है जिन्होंने बाल्गा नदी के मुहाने की भूमि ( Lower course of the Volga) को पार्यों का नूल निवास स्थान बतलाया है। अभी थोड़े ही दिन हुए डा० पीटर गाइल्स ने कॅबिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया के प्रथम भाग में इस प्रश्न पर विचार किया है। बहुत यन के बाद उन्होंने हंगरी प्रांत में कारपेथियन पर्वत के आसपास के वृत्ताकार स्थान को आर्यों का आदिम स्थान निर्दिष्ट

  • इसका कारण यह है कि उस प्रांत में बोली जानेवाली आर्यभाषा लिधु-

आनियन में प्राचीनता के चिह्न अन्य पार्यमापात्रों की अपेक्षा अधिक मिलते हैं ।