पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३२९

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३०० भाषा-विज्ञान किया है। भारतीय विद्वान् सर देसाई ने बाल्कश झील के पार्श्ववर्ती स्थान को आर्यों का मूल निवास बतलाया है। उनके मत की पुष्टि के लिये एक प्रबल प्रमाण यह है कि आज भी उक्त स्थान पर सप्तसिंधु अथवा 'सात नदियों का देश' नामक एक प्रांत है। कुछ ही दिन पूर्व हिट्टाइट के जो शिलालेख मिले हैं उनमें वैदिक देवताओं का उल्लेख देखकर बहुत से विद्वान् मेसोपोटामिया को आर्यों का मूलस्थान मानने के पक्ष में हैं । दिवंगत लोकमान्य तिलक ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "आर्क- टिक होम इन दी वेदाज़ में अनेक बाह्य एवं आभ्यंतर प्रमाणों के आधार पर आर्यो' को उत्तरी ध्रुव के समीप का निवासी सिद्ध किया है । तिलक जी की युक्ति का अधार क्रौल का हिम-युग सिद्धांत था जिसका खंडन हो चुका है। परंतु हिम-युग सिद्धांत का खंडन होने पर भी तिलक जी के मत में कोई बाधा नहीं पड़ती। उनका कहना केवल इतना हो है कि अंतिम हिम-युग का समय मानवजाति के स्मृति-काल में ही था, जिसे वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। अब हम इन विभिन्न मतों की संक्षिप्त समीक्षा कर लेना आवश्यक समझते हैं। सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आर्यजाति के आदिम निवासस्थान के विचार में राष्ट्रीय भाव भी उपस्थित होकर बहुत कुछ बाधा उत्पन्न कर देते हैं। समस्त यूरोप के लोग आर्यों का मूल निवासस्थान अपने महाद्वीप में निर्दिष्ट करने का यत्न करते हैं । एशिया से युरोपीय जातियों के पूर्वपुरुप गए, यही उनकी भाषा का जन्म हुआ, यहीं की सभ्यता के आधार पर उनकी सभ्यता का प्रासाद खड़ा हुआ, ये सब बातें युरोपियनो के राष्ट्रीय भावों में- उनके जातीय अभिमान में घट्टा लगाती हैं। इतना ही नहीं, युरोप के भिन्न-भिन्न देशों के लोग भी अपने देश में ही आर्यों के श्रादिम स्थान की कल्पना करने का यत्न करते हैं। कोई-कोई विद्वान् जित भापा के पंडित होते हैं अथवा जिस भाषा से उनका घनिष्ठ संबंध होता है, उसी भाषा में प्राचीनता के चिह्न हॅदन का अधिक यत्न करते हैं और उस भाषा के बोले जानेवाले स्थान को ही श्रादिम धार्य-निवास ठहराते हैं।