पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३३२

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प्रागैतिहासिक खोज ३०३ ने एक स्वर से स्वीकार नहीं कर लिया है । जो हो, अभी यह निश्चय- पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि आर्यो का मूल निवासस्थान कहाँ था। हाँ, इतना तो निश्चित जान पड़ता है कि एशिया के मध्य भाग में ही श्राओं का परस्पर विच्छेद हुआ और उनकी एक शाखा पश्चिम में यूरोप की ओर गई तथा दूसरी शाखा दक्षिण-पूर्व की ओर ईरान तथा भारतवर्ष में आई । यहाँ तक तो आयों के मूल निवासस्थान के विषय में विचार किया गया, पर अव प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य की उत्पत्ति पहले पहल कहाँ हुई। इस संबंध में भी विद्वानों में बहुत भतभेद है और विषय इतना बड़ा है कि इस छोटी सी पुस्तक में उस पर विचार करने के लिये स्थान नहीं है । हम संक्षेप में इतना ही कह सकते हैं कि मानवसृष्टि की उत्पत्ति किसी एक स्थान में न होकर अनेक स्थानों में एक साथ था लगभग एक ही समय में हुई होगी। ऐसा जान पड़ता है कि मध्य एशिया से आर्यो के दो दल हो गए थे। एक दल पूर्व-दक्षिण की ओर गया और दूसरा पश्चिम की ओर। जो दल पश्चिम की ओर गया, वह कैस्पियन श्रावों की पश्चिमी शाखा, 'समुद्र-तट तक तो अविभक्त रहा, पर वहाँ उसकी अनेक शाखाएँ हो गई और समय समय पर अनेक शाखाएँ भिन्न भिन्न दिशाओं में गई और नई नई जातियों, भाषाओं, राज्यों तथा सभ्यताओं का विकास करने में समर्थ हुई। क्रमश: ये समस्त यूरोप में फैल गई। पहले एक शाख', जिसे केल्ट कहते हैं, डैन्यूब नदी के किनारे तक गई। इसके अनंतर स्यटन शाखा भी वहीं पहुंची। उसने केल्ट शाखा के लोगों को खड़ कर पश्चिम की ओर आगे बढ़ा दिया और आप वहाँ बस गई ! तो री शाखा स्वोनियन ने रूस की ओर प्रस्थान किया और वहाँ से क्रमश: इलीरिया, पोलैंड और चोही- मिया में फैल गई। चौथी शाखा ने यूनान और पाँची शाखा ने दक्षिण की ओर इटली में जाकर अपना डेरा जमाया। जो दल दक्षिण-पूर्व की ओर गया, वह पहले पहल आकसस और जरकोज नदियों के किनारे जा वसा । अतएव हम कह सकते हैं