पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३४

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विपय-प्रवेश और बुद्धि' नामक एक ग्रंथ लिखा था, जिसमें संस्कृत का अच्छा परिचय दिया गया था और भारतीयों की बहुत प्रशंसा की गई थी। इस ग्रंथ के कारण अनेक दूसरे जर्मन विद्वानों में भी संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा हुई। उन्हीं में से आधुनिक भाषा-विज्ञान के जन्मदाता मैंज बाँप भी थे । डेनमार्क के रैसमस रास्क तथा जर्मनी के फ्रैंज बाँप, जेवक ग्रिम ये तीन आधुनिक भाषा-विज्ञान के जन्मदाता. माने जाते हैं। पर तुलनात्मक भाषा-विज्ञान के संबंध में बाँप को ही अधिक श्रेय दिया जाता है। रास्क ने ध्वनि के नियमों के महत्व को पहचाना था। जर्मन-व्यंजनों के परिवर्तन का पता निम से पूर्व उसने लगाया था। प्रिम विशेष रूप से जर्मन समूह की भाषाओं की ओर झुके थे और उन्होंने सभी के संबंध में नियमादि वनाए। प्रिम का सिद्धांत जर्मन समूह की भाषाओं के लिये ही अधिक लागू है। बाँप ने संस्कृत के अध्ययन से आरंभ किया और भारोपीय भाषा-परिवार में अधिक भापाओं का समावेश किया। उन्होंने संस्कृत, जैद, यूनानी, लैटिन, स्यूदैनिक, लिथुआनियन, स्लेवानियन तथा केल्टिक भाषाओं के पारस्प- रिक संबंध का पता लगाया । सन् १८१८ ई० में उन्होंने इन भाषाओं का एक तुलनात्मक व्याकरण लिखा जो तुलनात्मक भाषा-विज्ञान का प्रथम ग्रंथ माना जाता है । वाँप ने अनेक प्रसारणों से यह भी सिद्ध कर दिया कि ये सब भापाएँ वोस्तव में किसी एक ही भाषा से निकली हैं। तब से अन्यान्य अनेक विद्वानों का भी ध्यान इस ओर गया और उन सबके सम्मिलित परिश्रम से आधुनिक भापा-विज्ञान की सृष्टि हुई। सन् १८६० ई० के लगभग आर्य भाषाओं का प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् श्लाइशर था। उसी ने सबसे पहले मूल भारोपीय भा . के रूपों की कल्पना करने का यत्न किया था। पर उसके सिद्धांत प्रवल प्रमाणों के आधार पर नहीं थे। इसलिए पीछे के विद्वानों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। सन् १८७५ ई० के पश्चात् भाया-विज्ञान के इतिहास का आधुनिक युग प्रारंभ होता है। इस समय के प्रसिद्ध विद्वानों-मेक्समूलर, हिटने, पाल- ब्रगमैन, डेलबुक आदिने भाषा के संबंध के नए नए सिद्धांत स्थिर फा०२