पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३४९

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भाषा-विज्ञान स्पर्श से उत्पन्न होती हैं। तुलना की दृष्टि से देखा जाय तो अवश्य ही मूर्धन्य वणों का उच्चारण-स्थान तालव्य वर्णो की अपेक्षा पीछे है । वर्णमाला में कंत्र्य, तालव्य, मूर्धन्य और दंत्य वर्गों को क्रम से रखा जाता है इससे यह न समझना चाहिए कि कंठ के बाद तालु और तब मृधी पाता है। प्रत्युत कंन्य और तालव्य तथा मूर्धन्य और दत्य वर्ग के परस्पर संबंध को देखकर यह वर्णक्रम रखा गया है-वाक् से वाच का और विकृत से विकट का संबंध प्रसिद्ध ही है। उदा०-टीका, रटना, चौपट । अंगरेजी में द, इ, ध्वनि नहीं है। अंगरेजी t और d वयं हैं अर्थात् उनका उच्चारण ऊपर के मसूढ़े को बिना उलटी हुई जीम की नाक से छूकर किया जाता है; पर हिंदी में वर्त्य ध्वनि न होने से बोलनेवाले इन अंगरेजी ध्वनियों को प्रायः मूर्धन्य बोलते हैं। (७) ट--महाप्राण, अधोय, मूर्धन्य, स्पर्श है। उदा०-ठाट, कठघरा, माठ । (८) -अल्पप्राण, योप, मूर्धन्य, स्पर्श व्यंजन है। उदा. डाक, गाहर, गढेरी, टोडर, गड्डा, खंड। (९) ह-महामाण, घोय, मूर्धन्य स्पर्श है। उदा.-कना, ढीला, पंढ, पंढरपूर, मेढक । ड का प्रयोग हिंदी तद्भव शब्दों के श्रादि में ही पाया जाता है। पंट संस्कृत का और पंढरपूर मराठी का है। (१०)२-अल्पप्राण; अयोप, दंत्य स्पर्श है। इसके उच्चारण में जीम की नोक दाँतों की उपरवाली पंक्ति को छूती है। उदा--तव, मनबाली, बात । (१४) -- और य में केवल वही भेद है कि .. महामारा है। उपायोटा, पत्थर, साथ । (१२) द-सफा भी उच्चारण त की भॉनि होता है। यह अपमान नोय, त्य पाह। मा.दादा, मदारी, चोदी।