पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३५०

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स्वर और व्यंजन ३२१ (१३) ध-महाप्राण, घोष, दत्य स्पर्श है। उदा०--धान, बधाई, आधा । (१४) प-अल्पप्राण, अवोष, ओष्ठ्य स्पर्श है। ओष्ठ्य ध्वनियों के उच्चारण में दोनों ओठों का स्पर्श होता है और जीभ से सहायता नहीं ली जाती। यदि कोई ओष्ठ्य वर्ण शब्द अथवा 'अक्षर के अंत में आता है तो उसमें केवल स्पर्श होता है, स्फोट नहीं होता। उदा०--पत्ता, अपना, बाप । (१५) फ—यह महापाण, अवोष, ओष्ठ्य स्पर्श है। उदा०--फूल, बफाग, कफ। (१६) व–अल्पप्राण, पोष, ओष्ठ्य स्पर्श है। उदा०-~-धीन, धोबिन, अव । (१७) भ--यह महाप्राण, घोप, ओष्ठ्य स्पर्श है। उदा०~-मला, मनभर, साँभर, कभी। (१८) च--च के उच्चारण में जिह्वोपान ऊपरी मसूढ़ों के पास घर्ष-स्पर्श ताल्वन का इस प्रकार स्पर्श करता है कि एक प्रकार की रगड़ होती है अत: यह घर्प-स्पर्श अथवा स्पर्श-संघर्षी ध्वनि मानी जाती है। तालु की दृष्टि से देखें तो कंठ के आगे टवर्ग आता है और उसके आगे घवर्ग अर्थात् चवर्ग का स्थान आगे की ओर बढ़ गया है। च-अल्पप्राण, अयोप, तालव्य वर्ष-स्पर्श व्यंजन है। उदा०-चमार, कचनार, नाच। (१९) छ-महाप्राण, अयोप, तालव्य घर्ष-स्पशे वर्ण है। उदा०--छिलका, कुछ, कछार । (२० } ज-अल्पप्राण, घोप, तालव्य स्पर्श-धर्प वर्ण है। उवा--जमना, जाना, काजल, आज । (२१) झ-महाप्राण, घोप, तालव्य घर्प-स्पर्श वर्ण है। उदा०—माड़, सुलमाना, वाँझ । फा०२१