पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३५२

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. स्वर और व्यंजन ३२३ (२५) न.-अल्पप्राण, घोष, वर्त्य, अनुनासिक स्पर्श है। इसके उच्चारण में ऊपर के मसूढ़े से जिलानीक का स्पर्श होता है। अत: इसे दंत्य मानना उचित नहीं। उदा० ~ नमक, कनक, कान, बंदर। (२६) न्ह–महाप्राण, घोष, वय॑, अनुनासिक व्यंजन है। पहले इसे विद्वान संयुक्त व्यंजन मानते थे पर अब कुछ अाधुनिक विद्वान् इसे घ, ध, भ आदि की तरह मूल महाप्राण ध्वनि मानते हैं। उदा०-उन्हें, कन्हैया, जुन्हैया, नन्हा । (२७) म-अल्पप्राण, घोप, श्रोष्ठ्य, अनुनासिक स्पर्श है। उदा०-माता, रमता, काम। (२८) म्ह--महाप्राण, घोप, ओष्ठ्य, अनुनासिक स्पर्श है। न्ह के समान इसे भी अब विद्वान् संयुक्त व्यंजन न मानकर मूल महाप्राण व्यंजन मानते हैं। उदा०-तुम्हारा, कुम्हार । यहाँ एक बात ध्यान देने की यह है कि हिंदी के विचार से न, न्ह, म और म्ह, ये ही अनुनासिक ध्वनियाँ हैं। शेष तीन ङ, ब और ण के स्थान में 'न' ही आता है। केवल तत्सम शब्दों में इनका प्रयोग किया जाता है । और अनुस्वार के विचार से तो दो ही प्रकार के उच्चारण होते हैं और म। (२९) ल-पाश्विक, अल्पप्राण, घोष, वर्त्य, ध्वनि हैं। इसके उच्चारण में जीभ की नोक ऊपर के मसूढ़ों को अच्छी तरह छूती है किंतु साथ ही जीभ के दोनों ओर पाश्विक खुला स्थान रहने से हवा निकला करती है। यद्यपि ल और र एक ही स्थान से उच्चरित होते हैं पर ल पार्श्विक होने से सरल होता है। उदा०-लाल, जलना, कल ।