पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३५५

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. ३२४ भाषा-विज्ञान (३०) ल्ह-यह ल का महाप्राण रूप है। न्ह और म्ह की भाँति यह भी मूल व्यंजन ही माना जाता है। इसका प्रयोग केवल बोलियों में मिलता है । उदा०-०--- -काल्हि, कल्ह (बुन्देलखंडी), त्र सल्हा (हिं० सलाह)। कलही, जैसे खड़ी बोली के शब्दों में भी यह ध्वनि सुन पड़ती है। (३१) र--लुंठित, अल्पप्राण, वयं, घोष-ध्वनि है। इसके उच्चा- रण में जीभ की नोक लपेट खाकर वर्क्स अर्थात् लुंठित आर के मसूढ़ों को कई बार जल्दी जल्दी छूती है उदा०--रटना, करना, पार, रिण । (३२) रह-र का महाप्राण रूप है। इसे भी मूल ध्वनि माना जाता है। पर यह केवल बोलियों में पाई जाती है। जैसे- काहानो, उरहानो आदि (ब्रज)। (३३) ड-अल्पप्राण, घोप, मूर्धन्य उत्क्षिप्त ध्वनि है। हिंदी की नवीन ध्वनियों में से यह एक है। इसके उच्चारण में उलटी जीभ की नोक से कठोर तालुका स्पर्श झटके उस्तित के साथ किया जाता है। 5 शब्दों के आदि में नहीं आता; केवल मध्य अथवा अंत में दो स्वरों के बीच में ही आता है उदा०-सैंड, कड़ा; वड़ा, बड़हार। हिंदी में इस ध्वनि का बाहुल्य है। (३४) ढ-महाप्राण, बोप, मूर्धन्य, उत्क्षिप्त ध्वनि है। यह ड़ का ही महाप्राण रूप है । ड, द स्पर्श हैं और ड, ढ़ उस्क्षिप्त ध्वनि हैं। बस यही भेद है। ड, ढ का व्यवहार शब्दों के आदि में ही होता है और ड, ढ़ का प्रयोग दो स्वरों के बीच में ही होता है। उदा०--बढ़ना, बूढा, मूढ़ । 1