पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३६

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विषय-प्रवेश १९ तक नहीं गया था। यूरोपियनों ने पहले पहल इस ओर उद्योग किया था। अब बहुत से विद्वानों ने इस ओर ध्यान दिया है। प्राचीन बोलियों पर भी अच्छी पुस्तकें निकल चुकी हैं। राष्ट्रभाषा हिन्दी का अध्ययन हुआ है और अच्छे अच्छे ग्रंथ निकले हैं। अभी बहुत कुछ होना बाकी है। पर जो लोग आधुनिक भारतीय भाषाएँ बोलते हैं उनका इस विषय में अग्रसर होना कर्तव्य है। अपनी मातृभाषाओं का जितना मर्म वे समझ सकते हैं, उतना विदेशी नहीं समझ सकते। अतएव इस बात की बड़ी आवश्यकता है कि भारतीय विद्वान् भाषा की ओर दत्तचित्त हों और उसको दृढ़ आधार पर स्थिर करके अपनी भाषाओं के रहस्यपूर्ण तत्त्व समझने और समझाने का उद्योग करें