पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/४३

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३० भापा-विज्ञान वह हमें पूर्वजों की परंपरा से प्राप्त हुई है। उसे हममें से प्रत्येक व्यक्ति अर्जित करता है पर वह किसी की कृति नहीं है । भापा की उत्पत्ति इस भापा को समझने के लिये केवल संबंध ज्ञान आवश्यक होता है अर्थात् वक्ता या श्रोता को केवल यह जानने का यत्न करना पड़ता है कि अमुक शब्द का अमुक अर्थ से संबंध अथवा संसर्ग है। भावा संबंधों और संसर्गों के समूह के रूप में एक व्यक्ति के सामने आती है। बच्चा भाषा को इन्हीं संसों के द्वारा सीखता है और एक विदेशी भी किसी भाषा को नूतन संसों के ज्ञान से ही सीखता है। अत: भाषा का प्रारंभ संसर्ग ज्ञान से ही होता है । भाषा की उत्पत्ति समझने के लिये यह जानना आवश्यक है कि किसी शब्द का किसी अर्थ से संबंध प्रारंभ में कैसे हुआ होगा, किसी शब्द का जो अर्थ हम आज देखते हैं वह उसे प्रारंभ में कब और कैसे मिला होगा । इसका उत्तर भिन्न भिन्न लोगों ने भिन्न भिन्न ढंग से दिया है। सबसे प्राचीन मत यह है कि भापा को ईश्वर ने उत्पन्न किया और उसे मनुष्यों को सिखलाया। यही मत पूर्व और पश्चिम के सभी देशों और जातियों में प्रचलित था। इसी कारण दिव्य उत्पत्ति धार्मिक लोग अपने अपने धर्म-ग्रंथों की भाषा को आदि भाषा मानते थे। भारत के कुछ धर्मानुयायी वैदिक भाषा को मूल भाषा मानते हैं। उनके अनुसार देवता उसी भाषा में बोलते हैं और संसार की अन्य भाषाएँ उसी से निकली हैं। बौद्ध लोग अपनी मागधी के साहित्यिक रूप पाली को ही ईश्वर की वाणी मानते थे। ईसाई लोग हिब्रू को ही मनुष्यों की आदिम भाषा मानकर उसी से संसार की सब भाषाओं की उत्पत्ति मानते थे। मुसलमानों के अनु- सार ईश्वर ने पैगंवर को अरवी भाया ही सबसे पहले सिखाई। आज विज्ञान के युग में इस मत के निराकरण की कोई आवश्यकता नहीं है। इस दिव्य उत्पत्ति के सिद्धांत के दोप स्पष्ट हैं । केवल इस अर्थ में यह मत सार्थक माना जा सकता है कि भाषा मनुष्य की ही विशेष संपत्ति है, अन्य प्राणियों को वह ईश्वर से नहीं मिली है। 5 . 7