पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/४८

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भाषा और भापण ३५ fiend शब्द पाह ( pah) और फाइ ( fie) जैसे किसी विस्मयादि बोधक से बना जान पड़ता है। अरबी में वेल ( wail) शब्द आपत्ति के अर्थ में आता है और उसी से मिलता शब्द 'वो' विस्मयादिवोधक माना जाता है। इसी प्रकार अँगरेजी में 'वो' ( woe) शब्द विस्मयादि- बोधक होने के अतिरिक्त संज्ञावाचक भी है। ऐसी बातों से विस्म- यादिवोधक शब्दों का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। इन दोनों सिद्धान्तों में कोई वास्तविक भेद नहीं हैं; क्याकि जिस प्रकार पहले के अनुसार जड़ वस्तुओं और चेतन प्राणियों की अन्यक्त ध्वनि का अनुकरण शन्नों को जन्म देता है उसी प्रकार दूसरे के अनुसार मनुष्य की अपनी तथा अपने साथियों की हप-विस्मय आदि की सूचक ध्वनियों द्वारा शक उत्पन्न होते हैं। दोनों में नियम एक ही काम करता है, पर आधार का थोड़ा सा भेद है। एक बाह्य जगत् को प्राधान्य देता है तो दूसरा मानस जगत् को। दोनों प्रकार के ही शब्द शब्द-कोप में आते हैं और मापा के विकास की अन्य अवस्थाओं में- जिनका इतिहास हम जानते हैं-भाषा में शब्द अव्यक्तानुकरण और भावाभिव्यंजन दोनों कारणों से बनते हैं, अत: इन दोनों सिद्धांतों का व्यापक अर्थ लेने से दोनों एक दूसरे के पूरक सिद्ध हो जाते हैं। यहाँ एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए कि अनुकरण करने से किसी ध्वनि का बिलकुल ठीक ठीक नकल करने का अर्थ न लेना चाहिए । वर्णनात्मक शब्द में अव्यक्त ध्वनि का-चाहे वह किसी पशु-पक्षी की हो अथवा किसी मनुष्य की -थोड़ा साश्य मात्र उस वस्तु का स्मरण करा देता है। तीसरे प्रकार के शब्द प्रतीकात्मक होते हैं। स्वीट ने इस भेद को बड़ा व्यापक माना है। उन ने भेदों से जो शब्द शेष रह जाते हैं वे प्राय: सब इसके अंतर्गत आ जाते हैं। सचमुच प्रतीकात्मक शब्द ये प्रतीकात्मक शब्द बड़े मनोहर और मत्वपूर्ण होते हैं। जैसे लैटिन की 'विबेरे, संस्कृत की पिबति', हिंदी की 'पीना जैसी क्रियाएँ इस बात का प्रतीक हैं कि