पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५०

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भापा और भाषण वच्चे मामा, पापा, वाबा, ताता आदि शब्द अकारण ही बोला करते हैं। वे बुद्धिपूर्वक उन शब्दों का प्रयोग नहीं करते, पर मा-बाप उस बच्चे के मुख से निकले हुए शब्द को अपने लिये प्रयुक्त समझ लेते हैं । इस प्रकार ये ध्वनियाँ मा और बाप का प्रतीक बन जाती हैं। इसीलिये ये शब्द प्रायः समस्त संसार की भाषाओं में किसी न किसी रूप में पाये जाते हैं और यही कारण है कि वही 'मामा' शब्द किसी भाषा में मा के लिये और किसी भाषा में पिता के लिये प्रयुक्त होता है। कभी कभी यह प्रतीक-रचना बड़ी धुंधली भी होती है पर प्राय: शब्द और अर्थ के संबंध के मूल में प्रतीक की भावना अवश्य रहती है । इस त्रिविध रूप में प्रारंभिक शब्द-कोष की कल्पना की जाती है 1 पर साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि उत्पन्न तो बहुन से शब्द हो जाते हैं, पर जो शब्द समाज की परीक्षा में योग्य सिद्ध होता है वही जीवन दान पाता है । जो मुख और कान दोनों के अनुकूल काम करता है अर्थात् जो व्यक्त-ध्वनि मुख से सुविधापूर्वक उच्चरित होती है और कानों को स्पष्ट सुन पड़ती है वही योग्यतमावशेष के नियमानुसार समाज की भापा में स्थान पाती है। यही मुख-सुख और श्रवण-सुख की इच्छा किसी शब्द को किसी देश और जाति में जीवित रहने देती है और किसी में उसका बहिष्कार अथवा वध करा देती है। पर यदि प्राचीन से प्राचीन उपलब्ध शब्द-कोप देखा जाय तो उसका भी अधिकांश भाग ऐसा मिलता है जिसका समाधान इन तीनों उपर्युक्त सिद्धांतों से नहीं होता । इन परंपरा-माप्त शब्द ग्रौपचारिक शब्द की उत्पत्ति का कारण उपचार माना जाता है। शब्दों के विकास और विस्तार में उपचार का बड़ा हाथ रहता है। जो जाति जितनी ही सभ्य होती है उसके शब्द उतने ही औपचारिक होते हैं। उपचार का साधारण अर्थ है ज्ञात के द्वारा अज्ञात की व्याख्या करना, किसी ध्वनि के मुख्य अर्थ के अतिरिक्त उसी ध्वनि के संकेत से एक अन्य तथा सहश और संबद्ध अर्थ का बोध कराना। उदाहरणार्थ आस्ट्रेलिया के आदिम निवासियों को जव पहले