पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५१

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३८ भाषा-विज्ञान पहल पुस्तक देखने को मिली तो वे उसे 'मूयूम' कहने लगे । 'मूयूम' उनकी भाषा में स्नायु को कहते हैं और पुस्तक भी उसी प्रकार खुलती और बन्द होती है। अगरेजी का पाइप (pipe) शब्द आज नल के अर्थ में आता है। पहले pipe गड़रिये के वाजे के लिये आता था। वायक्लि के अनुवाद तक में पाइप' वाद्य के अर्थ में आया है पर उसका अर्थ अव बिलकुल बदल गया है । इसी प्रकार पिक्यूलियर (peculiar) शब्द भी उपचार की कृपा से क्या से क्या हो गया है। पहले पशु एक शब्द था । वह संस्कृत की पश् धातु से बना है। पश् का अर्थ होता है वाँधना, फाँसना। इसी प्रकार पशु पहले पालतू और घरेलू जानवर को कहते थे और हिंदी में आज भी पशु का वही प्राचीन अर्थ चलता है, पर इसके लेटिन रूप पेकस (pecus) से, जिसका पशु ही अर्थ होता था, पेनिश्रा, (pecunia) वना जिसका अर्थ हुआ किसी भी प्रकार की संपत्ति' । उसी से आज का अँगरेजी शब्द पेनिअरी (pecuniary = सांपत्तिक) बना है । उसी पेक्यूनिया से पेक्यूलियम (peculium) बना और उसका अर्थ हुआ दास की निजी संपत्ति । फिर उसके विशेपण पेक्यूलिअरिस (peculiaries) से फ्रेंच के द्वारा अंगरेजी का पिक्यूलियर (peculiar) शब्द बना। इसी प्रकार अन्य शब्दों की जीवनी में भी उपचार की लीला देखने को मिलती है। पहले संस्कृत की 'व्यथ्' और 'कुप्' धातुएँ काँपने और चलने आदि के भौतिक अर्थों में आती थीं । व्यथमाना पृथ्वी का अर्थ होता था 'काँपत्ती और चलती हुई पृथ्वी' और कुपित पर्वत का अर्थ होता था 'चलता-फिरता पहाड़ पर कुछ दिन बाद उपचार स इन क्रियाओं का अर्थ मानसिक हो गया। इसी से लौकिक संस्कृत और हिंदी प्रभृति आधुनिक भारतीय भाषाओं में व्यथा' और 'कोप' मानसिक जगत् से संबद्ध देख पड़ते हैं । इसी प्रकार 'रम्' धातु का ऋग्वेद में- 'टिकाने आना' अथवा 'स्थिर कर देना' अर्थ था, पर धीरे धीरे इसका औपचारिक अर्थ 'आनंद देना' होने लगा। आज 'रमण', 'मनोरम' श्रादि शब्दों में गम का वह पुराना स्थिर होनेवाला अर्थ नहीं है। स्थिर पर