पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५४

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भाषा और भाषण इस प्रकार इस समन्वित विकासवाद के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति में ध्वनियों के रूप में भाषा के वीज पहले से ही विद्यमान थे। समाज ने उन्हें विकसित किया, भापण का रूप दिया और आज तक उसे संरक्षित रखा । जहाँ तक इतिहास की साक्षी मिलती है, समाज और भाषा का अन्योन्याशय संबंध है। इस विवेचन में हम यह भी देख चुके हैं कि भाषा चाहे कुछ अंश तक व्यक्तिगत हो, पर भाषण तो सामाजिक और सप्रयोजन वस्तु है और विचार करने पर उसके तीन प्रयोजन स्पष्ट भाषा के प्रयोजन देख पड़ते हैं। प्रथम तो वक्ता श्रोता को प्रभा- वित करने के लिये बोलता है। विशेष वस्तुओं की ओर ध्यान आकर्षित करना भाषा का दूसरा प्रयोजन होता है । इन मुख्य प्रयोजनों ने भाषण को जन्म दिया, पर पीछे से भाषण का संबंध विचार से सबसे अधिक घनिष्ठ हो गया। भापण में विचार की कल्पना पहले से ही विद्यमान रहती है, पर यह भाषण की क्रिया का ही प्रसाद है जो मनुष्य विचार करना सीख सका है। किसी किसी समय तो अध्ययन में भाषा से भापण अधिक सहायक होता है।