पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५५

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तीसरा प्रकरण भाषाओं का वर्गीकरण द्विग्न का कथन था कि वाक्य से भाषण का आरंभ मानन अनर्गल और निराधार है; शब्दों के बिना वाक्य की स्थिति ही कैली परंतु आधुनिक खोजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बाक्य से भपाण का भापा के आदि काल में वाक्यों अथवा वाक्य श्रारंभ शब्दों का ही प्रयोग होता है। बच्चे की भाप सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान देने से यही बात स्पष्ट होती है कि वह पहले बाक्य सीखता है, वाक्य बोलता है और वाक्थों में ही सोचत समझता है। धीरे धीरे उसे पदों और शब्दों का पृथक पृथक ज्ञान होत है। उस प्रारंभिक काल के वाक्य निश्चय ही आजकल के शब्दोंवाले वाक्य न रहे होंगे, जिनके पृथक् पृथक् अवयव देखे जा सकें, पर थे। संपूर्ण विचारों के बाचक वाक्य ही । अर्थ के विचार से तो वे वाक्य ही थे, रूप के विचार से वे भले ही ध्वनि-समूह रहे हो। धीरे धीरे भाष और भापण में वाक्य के अवयवों का विकास हुआ तथा वाक्यों क शब्दों से विश्लेषण संभव हुआ। अाज वाक्य और शब्दों की स्वतंत्र सत्ता स्वीकृत हो चुकी है । साधारण व्यवहार में वाक्य एक शब्द-समूह ही माना जाता है। इस प्रकार यद्यपि व्यावहारिक तथा शास्त्रीय र से शब्द भाषा का चरम अवयव होता है, तथापि तात्पर्य की दृष्टि से वाक्य ही भापा का चरमावयव सिद्ध होता है। स्वाभाविक भाष अर्थात् भापण में वाक्य से पृथक् शब्दों की कोई स्तंत्र स्थिति नह होती । एक एक शब्द में सांकेतिक अर्थ होता है, पर उनके पृथक् पृथक प्रयोग से किसी बात अथवा विचार का बोध नहीं हो सकता । केवल 'गाय' अथवा 'राम' कहने से कोई भी अभिप्राय नहीं निकलता। यद्यपि