पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५६

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भाषाओं का वर्गीकरण ये सार्थक शब्द हैं, तथापि जब ये 'गाय है। अथवा 'राम है। के समान थाक्यों में प्रयुक्त होते हैं तभी इनके प्रोक्ता को वाक्य के अभिप्राय का ज्ञान होता है । भाषा के व्यवहार का प्रयोजन वक्ता के तात्पर्य का प्रकाशन ही होता है । उच्चारण के विचार से भी शब्दों का स्वतंत्र आस्तित्व नहीं प्रतीत होता। स्वर और लहजे के लिए श्रोता की दृष्टि पृथक पृथक शब्दों पर न आकर पूरे वाक्य पर, ही जाती है। यद्यपि लिखने में शब्दों के बीच स्थान छोड़ा जाता है, तथापि बाक्य के उन सब शब्दों का उच्चारण इतनी शीव्रता से होता है कि एक वाक्य एक ध्वनि- समूह कहा जा सकता है । जिस प्रकार गफ शब्द का विश्लेषण करें में किया जाता है, उसी प्रकार एक वाक्य का विश्लेषण उसके भिन्न भिन्न शब्दों में किया जाता है। परन्तु यह कार्य वैज्ञानिक का है, वक्ता का नहीं । वक्ता एक वाक्य का ही व्यवहार करता है, चाहे वह 'आ' 'जा' और हाँ के समान एक अक्षर काथवा एक शब्द से ही क्यों न बना हो। वाक्य के इस प्राधान्य को मानकर समस्त भाषाओं का वाक्य-मूलक आकृति-मूलक अथश रूपात्मक वर्गीकरण किया जाता | आप अथवा रचना की दृष्टि से वाक्य चार प्रकार के होते हैं वाक्यों के चार भेद समास-प्रधान, व्यास-प्रधान, प्रत्यय-प्रधान और (१) समास-प्रधान वाक्य विभक्ति-प्रधान । वाक्यों का यह भेद वाक्य- रचना अर्थात् वाक्य और उसके अवयव शब्दों के संबंध के आधार पर किया जाता है । जिस वाक्य में उद्देश्य विधेय आदि वाचक शब्द एक होकर समास का रुप धारण कर लेते हैं उस समस्त अथवा समास-प्रधान वाक्य कहते हैं। प्राय: ऐसे वाक्य एक मस्त शब्द के समान व्यक्त होते हैं । जैसे मेक्सिको भापा में नेवल नकल' और 'क' का क्रमशः 'मैं मांस' और 'खाना अर्थ होता है। अब यदि तीनों शब्दों का समास कर दें तो नी-नक-क वाच बन जाता है जिसका अर्थ होता है मैं मांस खाता हूँ अथवा उसी को तीन तीन भाग करके भी कह सकते है, जैसे निकाइन नकल' । इस वाक्य में निक्क एक समस्त वाक्य है जिसका अर्थ होता है मैं उसे खाता हूँ ।' .