पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५७

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भाषा-विज्ञान उसी के आगे उसी के समानाधिकरण्य से नये शब्दों के रखने से दूसरा वाक्य बन जाता है। उत्तर अमेरिका की चेरो की भाषा में भी ऐसी ही बाक्य-रचना देख पड़ती है; जैसे नातन (लाना), अमोखल (नाव) और निन (हम) का एक समास-वाक्य बनकर 'नाधोलिनिन' कहने से यह अर्थ होता है कि हमें (हमारे लिए) एक नाव लाओ' । दूसरे प्रकार के वाक्य ऐसे होते हैं, जिनमें प्रचन्ति व्यास की ओर अधिक रहती है । उनके यहाँ धातु जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। सभी शब्द स्वतंत्र रहते हैं । उनके संघात से ही (२) व्यास-प्रधान वाक्य एक वाक्य की पूर्णता होती है। वाक्य में उद्देश्य, विधेच आदि का संबंध स्थान, निपात अथवा स्वर के द्वारा प्रकट किया जाता है । अर्थात् संज्ञा, क्रिया या विशेषण आदि सबका रूप एक ही सा होता है, वाक्य में केवल उनके स्थान से यह निश्चित होता यह शब्द क्या है। इसी कारण ऐसी भाषाओं में रूपात्मक विकार नहीं दिखाई पड़ता। इसके शब्दों के रूप सदा एक से बने रहते हैं। भाषा की इस अवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण चीनी भापा है। इस भाषा के शब्दों में किसी प्रकार का विकार नहीं उत्पन्न होता, लव शब्द ज्यों के त्यों बने रहते हैं । जैसे यदि हम यह कहना चाहें कि मैं तुम्हें मारता हूँ, तो चीनी भाषा में हम कहेंगे 'न्गो ता नी' इस वाक्य में तीन शब्द हैं । पहले शब्द का अर्थ है 'मैं', दूसरे का 'मारना' और तीसरे का 'तुम्हें । अब यदि हम कहना चाहें कि 'तुम मुझे मारते हो तो हमें केवल इन शब्दों का स्थान उलट कर 'नी ता गो' कहना होगा । इसी प्रकार यदि हम कहना चाहें कि 'मनुज्य श्राम खाता है तो हमको चीनी भाषा के मनुष्य, आम और खाना के वाचक शब्द कहने होंगे । 'मनुष्य' शब्द का बहुवचन कहना होगा तो 'मनुष्य' और मुंड के वोधक चीनी शब्द कहेंगे। हिंदी में भी कमी कभी इसी प्रकार शब्द बनाकर भाव प्रकट किये जाते हैं। जैसे राजालोग, बालकगण, हमलोग श्रादि । चीनी भापा के अतिरिक्त वर्मी, स्यामी, अनामी, मलय श्रादि अनेक भाषाओं को वाक्य-रचना भी प्राय: इसी प्रकार की होती है