पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-विज्ञान वाक्य में से कारक अथवा लिंग के द्योतक प्रत्यय उनकी प्रकृति से अलग नहीं किए जा सकते। हम देख चुके हैं कि शब्द भाषण की दृष्टि से विशेप महत्त्व नहीं नसते, पर वैज्ञानिक दृष्टि से इनके भी चार भेद किए जाते हैं। कुछ शब्द एकाक्षर धातु के समान होते हैं। वाक्य में शब्दों का भेद प्रयुक्त होने पर भी वे अव्यय ही रहते हैं। कुछ शब्दो की रचना में प्रकृति और प्रत्यय का योग स्पष्ट दिखाई पड़ता है और कुछ में विद्धानों की सूक्ष्म दृष्टि ही देख पाती हैं। अंत में गेसे समस्त पद होते हैं जिनमें अनेक पद मिले रहते हैं। पहले प्रकार के शब्द धातु, दूसरे प्रकार के प्रत्यय-प्रधान तीसरे प्रकार के विभक्ति-प्रधान और चौथेप्रकार के समस्त अथवा वाक्य-शब्द कहे जाते हैं। इन चार प्रकार के शब्दों में विकास की चार अवस्थाएँ दिखाई पड़ती हैं। पहले शब्द धातु अवस्था में रहते हैं। फिर थोड़े दिनों में व घिस कर प्रत्यय वन जाते हैं। वे अकेले जाचक विकास की अवस्था न रहकर दूसरे शब्दों के साथ रहकर उनके विशेष अर्थों का द्योतन करते हैं। इस अस्था का अति- रंक विभक्ति को जन्म देता है और समस्त शब्दों में मिलता है । यही अंतिम अवस्था शब्द की पूर्णावस्था सी प्रतीत होती है । जाहरणार्थ 'राम' धातु-अवस्था में, राम सहित' अथवा 'राम' प्रत्ययावस्था में 'रामाय' विभक्ति-अवस्था में और 'अस्मि' 'समासावस्था में है । इसी प्रकार वास्यों के विकास की भी चार अवस्थाएँ पाई जाती हैं। भाषा पहले समासावस्था में रहती है और धीरे धीरे प्रत्यय और विभक्ति की अवस्था में से होती हुई व्यास-प्रधान हो जाती है। परन्तु वैज्ञानिक इतना ही कहते हैं कि संसार की भापायों में चार प्रकार की वाक्य-रचना और चार प्रकार की शब्द-रचना दिखाई पड़ती है। अत: रचना अथवा रूप (आइति) के आधार पर भाात्रों का चार विभागों में वर्गीकरण किया जा सकता है। यद्यपि विद्वानों का यह कथन था कि भापा वियोग से संयोग की