पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषाओं का वर्गीकरण ओर जाती है और फिर धूमकर ब्यासोन्मुख हो जाती है । माया-चक्क सतत घूमता रहता है, परंतु यह कल्पना प्रमाणों 'भाषा-चक्र--सहिति से पुष्ट न हो सकी। अस्तु, भाषा की सामान्य से व्यवहिति प्रवृत्ति संयोग से वियोग की ओर रहती है । भाषा प्रारंभिक काल में जटिल, समस्त और स्थूल रहती है। धीरे धीरे वह सरत, व्यस्त, सूक्ष्म और सुकुमार होती जाती है। भारोपीय परिवार की भाषाएँ इसका ज्वलंत उदाहरण हैं कि किस प्रकार पहले वे संहिति-प्रधान थीं और पीछे धीरे धीरे व्यवहिति-प्रधान हो गई। लिथुआनियन भाषा आज भी पूर्ण रूप से संहित कही जा सकती है। उसकी आकृति और रचना आज तीन हजार वर्गों से अपरिवर्तित और स्थिर है। इसका कारण इसकी भौगोलिक स्थिति है। लिथुआनिया की भूमि बड़ी आई और पंकिल है । दुर्लक्ष्य पर्वतों के कारण आक्रमणकारी भी वहाँ जाने की इच्छा नहीं करते और यहाँ का समुद्र-तट भी व्यापार के काम का नहीं। इसी कारण यहाँ सी भाषा इतनी अक्षुण्ण और अक्षत है । हिब और अरवी भाषाएँ एक ही परिवार की हैं और दो हजार वर्ष पूर्व दोनों ही संहित और संयुक्त थीं । परंतु आज हिब्रू अरवी की अपेक्षा अधिक व्यवहित और व्यास-प्रधान हो गई है। इनके प्राचीन धर्म-ग्रंथों की भाषा तो बिलकुल सुरक्षित है पर जातीय भाषाएँ कुछ व्यासोन्मुख हो गई हैं । यहूदी सदा विजित और अस्त होकर फिरते रहे । इससे इनकी भाषा संवर्ष के कारण अधिक विकसित और व्यवहित हो गई है । पर अखी सदा विजेताओं की भाषा होने के कारण आज भी बहुत कुछ संहित है। फारसी का भी बहुत कुछ ऐसा ही इतिहास है। ईसा के पाँच सौ वर्य पूर्व की प्राचीन भाषा वैदिक संस्कृत की लाई संहित थी। परंतु सिकंदर की चढ़ाई के पीछे की मध्यकालीन फारसी बहुत कुछ व्यवहित और वियुक्त हो गई थी, और आज की फारसी भारोपीय परिवार की सबसे अधिक व्यवहित भाषा मानी जाती है। इसका व्याकरण