पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/६३

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भाषा-विज्ञान तुलना करने पर विभक्ति-प्रधान और प्रत्यय-प्रधान रचना का भेद भी स्पष्ट हो जायगा। सब्द-सेवक कारक संस्कृत (बहु०) कन्नड़ी (बहु०) कर्ता सेवकाः सेवक-रु कर्म सेवकान् सेवक-रन्नु करण सेवकैः सेवक-रिद संप्रदान सेवकेभ्यः सेवक-रिगे अपादान सेवकभ्यः संबंध सेाकानाम् सेवक-र अधिकरण सेवकेषु सेवक-रल्ली कन्नड़ी के इन सब रूपों में र बहुवचन का चिह्न है। इसके स्थान पर 'म' कर देने से एकवचन के रूप बन जाते हैं। मलयन और मलनेशिया परिवार की भाषाएँ सर्व प्रत्यय-प्रधान होती हैं। उनकी रचना में सभी प्रत्ययों का संयोग दिखाई पड़ता है। जिन भापाओं में प्रत्यय प्रधानता के साथ व्यास, समास अथवा विभक्ति का भी पुट रहता है, वे ईषत्-प्रत्यय-प्रधान कहलाती हैं। इनमें अनेक भाषाएँ हैं । जापानी और काकेशी भापायों में विभक्ति की ओर झुकार दिखाई पड़ता है । हाउसा का व्यास की ओर और बास्क परिवार की भाषाओं का समास की ओर मुकात्र दिखाई पड़ता है। प्रत्यय-प्रधान भापा की तरह विभक्ति-रधान भाषा में भी प्रत्ययों के द्वारा हो व्याकरणिक संबंध का बोध होता है। परंतु एक अंतर यह है कि विभक्ति-प्रधान रचना में प्रकृति और विभक्ति-प्रधान प्रत्यय का एक दूसरे में पूर्णतया समाहार हो जाता है, यहाँ तक कि कभी कभी प्रत्यय का प्रत्यक्ष अस्तित ही नहीं प्रतीत होता।