पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७

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तृतीय संस्करण की भूमिका यह भाषा-विज्ञान का तीसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है। पहले दो संस्करणों में बहुत संशोधन किया गया था । इस संस्करण में एक प्रकरण बदा दिया गया है। इसमें लेखन कला तथा नागरी लिपि के विकास का इतिहास दिया गया है। यह लेख (स्वर्गीय) महामहोपाध्याय रायबहादुर डाक्टर गौरीशंकर हीराचंद शोमा लिखित प्राचीन-लिपि-माला नामक ग्रंथ के अाधार पर मेरे पुत्र गोगाजलाल खन्ना के उद्योग से लिखा गया है। यह अंध-रत्न अव अप्राप्य है। काशी } श्यामसुंदरदास -