पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७०

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भाषाओं का वर्गीकरण असंस्कृत भाषाओं से लेकर मय और नहुआत्ल्स जैसी साहित्यिक और संस्कृत भाषाएँ भी हैं जो प्राचीन मेक्सिको-साम्राज्य में व्यवहृत होती थीं। इस दूसरे खंड में भी अनेक भाषाएँ, विभाषाएँ और धोलियाँ हैं। च प्राय: संयोगी होती हैं। इनके पाँच मुख्य परिवार हैं-मलयन, मेलानेसिअन, थालीनेसिअन, पापुअन्न और आस्ट्रे- प्रशांत महासागरखंड लियन । तीसरे खंड में अफ्रीका की सव भाषाएँ और अफ्रीका खंड आती हैं। इनके भी पाँच मुख्य परिवार हैं- बुशमान, वांतू, सूडान, हेमेटिक और सेमेटिक । बुशमान परिवार की भापाएँ दक्षिण अफ्रीका में बोली जाती हैं । ये संयोग-प्रधान से व्यास-प्रधान हो रही हैं। इनमें लिंग-भेद केवल सजीव और निर्जीव का भेद ही सूचित करता है । भूमध्य रेखा के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम तक वांतू परिवार की भाषाएँ पाई जाती हैं। ये भापाएँ पूर्व-प्रत्यय-प्रधान होती हैं। इनमें व्याकरणिक लिंग का अभाव रहता है। भूमध्य रेखा के उत्तर में पूर्व से पश्चिम तक सुडान परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। ये व्यास-प्रधान हैं और इनकी धातुएँ एकाक्षर. होती हैं। इनमें भी लिंग-भेद का अभाव रहता है । इस परिवार की चार शाखाएँ हैं ---मित्र देशी, इथियोपी, मिश्रित और विकृत बोलियाँ और फूला भाषाएँ । इनमें से मिली शाखा की प्राचीन मिस्त्री और उससे निकली हुई काप्टिक भापा दोना ही अब प्राचीन लेखों में रक्षित हैं। वे अब बोली नहीं जाती। उनके क्षेत्र में अब सेमेटिक परिवार की अरवी भाषा बोली जाती है। इसी प्रकार इथिओपी शाखा की लिविजन और नुमिदिअन बोलियाँ भी अव जीवित नहीं हैं। उनका अस्तित्व शिलालेखों में पाया जाता है। शेष अर्थात् वर्वर तथा अन्य भाषाएँ (टावारक और शिल्हा) अभी तक बोली जाती हैं । इसके अतिरिक्त इस शाखा में की खामीर (एविसोनिया), सोमाली, गल्ला, सहो आदि बोलियाँ भी हैं। तीसरी शाखा में हाउसा, साई और नम बोलिया