पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-विज्ञान आधुनिक जीवित भाषाओं में से वारक भाषा (फ्रांस और स्पेन की सीमा पर ) वेस्ट पिरेनीज में बोली जाती है। यह भाषा संयोग- प्रधान है और इसको क्रिया थोड़ी बहुसंहित होती है । इस भाषा के सर्वनाम सेमेटिक और हेमेटिक सर्वनामों से मिलते से हैं और लिंग- भेद कंवल क्रियाओं में होता है। समास बनते हैं, पर समास-प्रधान भाषाओं की नाई इनके समासों में भी समस्त शब्दों के कई अंश लुप्त हो जाते हैं । शब्द-भांबार बहुत छोटा और हीन है। कभी कभी बहुत के लमान संबंधियों के लिये भी शब्द नहीं मिलते। वाक्य-विचार बड़ा सरल होता है। क्रिया प्रायः अंत में आती है। इस समुदाय की दूसरी जीवित भाषा जापानी है। इसमें पर-प्रत्यय-प्रधानता तो मिलती है, पर दूसरे लक्षण नहीं मिलते। यह बड़ी उन्नत भाषा है । इस पर चीनी भाषा और संस्कृत का प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार कोरियाई भाषा भी यूराल अल्ताई परिवार में निश्चित म.प से नहीं रखी जा सकती। यद्यपि कोरिया की राज-मापा तो चीनी हैं, पर लोक-भाषा यही कोरियाई है। इम परिवार की कुछ भाषाएँ, जिन्हें 'हाइपर घोरी' कहते हैं, एशिया के उत्तर-पूर्वी किनारे पर लना नदी के पूरब से दक्षिण में मखालिन तक व्यवहार में पाती हैं। भाषा-विज्ञान के प्रारंभिक काल में विद्वानों ने भारोपीय (इंडो-यूरो- पियन ) और नमेटिक के अतिरिक्त एक तीसरं परिवार 'तूरानी की कल्पना की थी और इस तीसरे परिवार में च अगन्न-अल्ताई परिवार तुर्की, चीनी श्रादि उन सभी भाषायों को रख दने श्रेजी उन दोनों परिवारों में नहीं आ सकती थी, पर अब अधिक योज होने पर यह नाम ( तृरानी ) छोड़ दिया गया है और अब नुकी भाषा से संबंध रखने वाले परिवार का दूसरा नाम युगल-अल्ताई परिवार ठीक समझा जाता है।