पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७२

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भाषाओं का वर्गीकरण यूराल-अल्ताई परिवार के क्षेत्र से आगे बढ़कर एशिया के पूर्वी और दक्षिणी-पूर्वी भाग में एकाक्षर भाषाएँ बोली जाती हैं। भारोपीय परिवार को छोड़कर इसी परिर के वक्ता संख्या एकाक्षर अथवा में सबसे अधिक हैं। यह परिवार बड़ा ही चीनी परिवार संहित और संश्लिष्ट भाषा-समुदाय है। इस 'परिवार में चीनी भाषा प्रधान होने से उसी के नाम से इस परिवार का नाम पड़ गया है और कुछ भाषाओं के भारत में होने से इस परिवार को लोग भारत-चीनी' (Indo-Chinese) भी कहते हैं। इसके मुख्य भेद चार हैं--(१) अनामी, (२) स्यामी, (६) तिब्बत-वर्मी और (४) चीनी। इनमें से अनामी और स्यामी पर चीनी का बहुत बड़ा प्रभाव ‘पड़ा है और चीनी के समान ही वे एकाक्षर, स्थान-प्रधान तथा स्वर- प्रधान भाषाएँ हैं। तिव्वती और धर्मी भाषाओं पर भारती भाषाओं का अधिक प्रभाव पड़ा है। उनकी लिपि तक ब्राह्मी से निकली है और तिव्वती (भोट ) भाषा में तो संस्कृत और पाली के अनेक ग्रंथ अनुवादित भरे पड़े हैं। इन तीनों वर्गों की अपेक्षा चीनी का महत्त्व अधिक है ! वही एकाक्षर और व्यासप्रधान भाषा का आदर्श उदाहरण मानी जाती है। वह पाँच हजार वर्षों की पुरानी संस्कृति और सभ्यता का खजाना है, उसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म विचारों और भावों तक के अभिव्यक्त करने की शक्ति है। उनकी लिपि भी निराली है। उसमें एक शब्द के लिये एक प्रतीक होता है। उसमें व्याकरण की प्रक्रिया का भी अभाव ही है। स्वर और स्थान का प्राधान्य तो चीनी का साधारण लक्षण है। द्राविड़ परिवार भारत में ही सीमित है। भारत की अन्य द्राविड़ परिवार भाषाओं से उसका इतना अनिष्ट संबंध है कि उसका वर्णन भारत की भाषाओं के प्रकरण में ही करना अच्छा होगा। काकेशस परिवार की भाषाएँ पूर्व-प्रत्यय और पर-प्रत्यय दोनों का