पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७३

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भापा-विज्ञान संचय करती हैं, अत: अब निश्चित रूप से वे संयोग-प्रधान भाषाएँ मानी जाती हैं। इनकी रचना इतनी जटिल होती काकेशस परिवार है कि पहले विद्वान् इन्हें भक्ति-प्रधान समझा करते थे और इनकी विभापाएँ और बोलियाँ एक दूसरे से इतनी कम मिलती हैं कि कभी कभी यह संदेह होने लगता है कि ये एक परिवार की हैं या नहीं। इस परिवार ये दा विभाग किये जाते हैं--(१) उत्तरी काकेशस और (२) दक्षिणी काकेशस । उत्तरी विभाग में किरकासियन, किस्तियन, लेस्त्रियन तथा अन्य विभाषाएँ हैं। दक्षिणी में जार्जियन, सुआनियन, मिप्रेलियन, तथा अन्य विमापाएँ हैं। वक्ताओं की दृष्टि से चीनी परिवार बड़ा है पर राजनीतिक, ऐतिहा- सिक तथा धार्मिक दृष्टि से सेमेटिक परिवार उससे भी अधिक महत्त्व का है । केवल भारोपीय परिवार सभी बातों में इससे बड़ा है । सेमेटिक परिवार की भाषाओं ने संसार की अनेक जातियों को लिपि की कला सिखाई है। केवल भारत और चीन की लिनि अपनी निजी और स्वदेशी कही जा सकती है। भारत ममेटिक परिवार की भी खरोष्टी आदि कई लिपियाँ सेमेटिक मूल में निकली हैं। कुछ विद्वान् ब्राह्मी को भी सेमेटिक से उत्पन्न वतलाते हैं। इन भापानों की सबसे पहली विशेषता यह है कि इनकी धातुएँ तीन व्यंजनों से बनती हैं। उनमें पर एक भी नहीं रहता, और उच्चारण के लिये जिन लरों अर्थात् अक्षरों का व्यवहार होता है, वे ही वाक्य- रचना को जन्म देते हैं । इन मापात्रों के रूप रसरों के किार से ही उत्पन्न होते है । इन स्वरों के द्वारा ही मात्रा, संख्या, स्थान, कारक 'यादि बालों का बोध होता है प्रान इन समेटिक भापायों में विभक्तियाँ अंगयो होती है। अत: विभक्तियों के साथ ही पूर्ण और पर विधियों का भी व्य हारता है। जैस 'कम्' (लिखना) तीन शानों की एक धातु है, इससे अक्वन ( उसने लिखवाया ), कतवत्