पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७५

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६६ भाषा-विज्ञान इसकी विभक्तियाँ प्रायः बहिर्मुखी होती हैं और प्रकृति के अंत में लगती हैं। इस परिवार की प्रायः सभी भाषाएँ संहित से व्यवहित हो रही है । इनकी धातुएँ प्राय: एकाच ( अर्थात् एकाक्षर) होती हैं और उनमें कृत् और तद्धित प्रत्यय लगने से अनेक रूप बनते हैं। इसमें पूर्व-विभक्तियाँ अथवा पूर्व सर्ग नहीं होते। उपसर्ग होते हैं, पर उनका वाक्य के अन्वय से कोई संबंध नहीं होता। पर सेमेटिक भाषाओं में ऐसी पूर्व विभक्तियाँ होती हैं जो वाक्य का अन्धय सूचित करती हैं। इस परिवार में निशुद्ध समास-रचना को विशेष शक्ति पाई जाती है जो अन्य सेमेटिक परिवारों में नहीं होती। इसी प्रकार अक्षराव- स्थान इस परिवार की अपनी विलक्षणता है। यद्यपि सेमेटिक में भी इससे मिलती-जुलती वात देख पड़ती है पर दोनों के कारणों में बड़ा अंतर है। भारोपीय भाषा के अक्षरा स्थान का कारण स्वर. अथवा बल होता है और सेमेटिक अपश्रुति वाक्य के अन्वय से संबंध रखती है। इन परिवार की भाषाओं में सभी प्रकार के संबंधों के लिये भिक्तिया श्रापश्यक होने के कारण विभक्तियों का भी अनुपम बाहुल्य हो गया है । इस परिवार में सेमेटिक के समान एकता न होने के कारण उन विभक्तियों में नित्य नूतन परिवर्तन होते रहते हैं। इससे इनमें विभक्तियों की संपत्ति बहुत अधिक बढ़ गई है। इस परिवार के नाम भी अनेक प्रचलित हैं। पहले मेक्समूलर प्रभृति लेखकों ने इसे 'पार्य' नाम दिया, पर अब आर्य शब्द से केवल भारत-ईरानी वर्ग का बोध होता है। कुछ दिनों परिवार का नामकरण नक इंडो-मन अथवा भारत-जर्मनी नाम व्यमार में याता था और जर्मन देश में आज भी यह नाम चलता है, पर सबसे अधिक प्रचलित नाम भागेपोय ही है। जर्मन को छोड़कर मभी यूरोपीय देशों "श्री भारत में भी यह नाम स्वीकृत हो चुका है। याः पग्विार की भाषाओं के मांगोलिक विस्तार का भी निर्देश पर दनाम अनिरिक्त इंटी-कन्टिक, मंनिक, और.