पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७६

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भाषाओं का वर्गीकरण ६७ काकेशियन नाम भी प्रयोग में आए पर इनका कभी प्रचार नहीं हुआ और न उनमें कोई विशेषता ही है । यद्यपि इंडो-कैल्टिक नाम में इस भाषा-क्षेत्र के दोनों छोर आ जाते हैं तो भी वह नाम चल न सका। इस भारोपीय परिवार में प्रधान, नव वर्ग अथवा शाखाएँ मानी जाती हैं कैल्टिक, जर्मनिक, इटालिक (लैटिन), ग्रीक (हेलेनिक), तोखारी, अल्बेनियन (इलोरिअनो, लैटोस्लाव्हिक (वाल्टोस्ताहिक), आर्मेनियन और आर्य (इंडो-ईरानी)। इसके अतिरिक्त डेसियनं, थोसियन, फ्रीजियन, हित्ताइट आदि परिवारों का शिलालेख से पता चलता है। इनमें से अधिक महत्व का परिवार हित्ताइट है पर उसके विषय में बड़ा मतभेद है। एशिया-माइनर के बोगाजकुई में जो ईसा से पूर्व चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी के इस हित्ताइट भाषा के शिलालेख मिले हैं उनकी भाषा, प्रो० साइस के अनुसार, सेमेटिक है, उस पर थोड़ा भारोपीय परिवार का प्रभाव पड़ा है, पर प्रो० हाजनी और कई भारतीय विद्वान् कहते हैं कि वह भापा वास्तव में भारोपीय है जिस पर सेमेटिक का प्रभाव पड़ा है । जो हो, यह भाषा भारोपीय और सेमेटिक के सम्मिश्रण का सुंदर उदाहरण है । विद्वानों की कल्पना है कि प्रागैतिहासिक काल में भी इस भारोपीय भाषा में दो विभाषाएँ थीं। इसी से उनसे निकली हुई भाषाओं की ध्वनियों में पीछे भी भेद लतित होता है। ग्रीक, केंटुम् और शतम्वर्ग लैटिन आदि कुछ भापाओं में प्राचीन मूल भाषा के चवर्ग ने कवर्ग का रूप धारण कर लिया है और संस्कृत, ईरानी आदि में वही चचर्ग 'घर्षक ऊज्म' बन गया है, अर्थात् कुंछ भाषाओं में जहाँ कवर्ग का कंठ्य वर्ण देख पड़ता है वहीं (उसी शब्द में) दूसरी भाषाओं में ऊष्म वर्ण पाया जाता है। जैसे लैटिन में केंदुम् , आक्टो, डिक्टिओ, गेनुस रूप पाए जाते हैं पर उन्हीं के संस्कृत प्रतिशब्द शतम् , अष्टौ, दिष्टिः, जन आदि में ऊष्म वर्ण देख पड़ते हैं । इसी भेद के आधार पर इन भारोपीय भाषाओं के दो वर्ग माने जाते हैं एक केंटुम् वर्ग, दूसरा शतम् (अथवा. सतम् ) वर्ग! सौ का वाचक शब्द सभो