पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७७

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६८ भाषा-विनात भारोपीय भाषाओं में पाया जाता है, अत: उसी को भेदक मानकर यह नामकरण किया गया है। यथा--मूल भा० चंतोम्, लैटिन केंटुम् , ग्रीक हेक्तोम, प्राचीन आयरिश केन , गाथिक खुंद, तोखारी कंध, और दूसरे वर्ग की संस्कृत में शतम् , अवेस्ता में सतम्, लिथु (शिंतस ) जिम्तस, समीती। पहले पहल जब बास्कोली ने १८७० ई० में इस भेद की ग्याल को थी और फान ब्राडके ने यह द्विधा वर्गीकरण किया था, तब यह समझा जाता था कि केंटुम् वर्ग पश्चिमी और शतम् वर्ग पूर्वी देशों में प्रचलित हुआ है, पर अव एशिया-माइनर की हित्ताइट (हिती) और मध्य एशिया (तुरफान ) की तोखारिश भाषाओं की ग्बोज ने इस पूर्व और पश्चिम के भेद को भ्रामक सिद्ध कर दिया है। ये दोनों भाषाएँ पूर्वीय होती हुई भी केंटुम् वर्ग की है। इस वर्गीकरण की विशेषता यह है कि किसी भी वर्ग की भापा में दोनों प्रकार की बोलियाँ नहीं मिलती अर्थात् कभी नियम का अतिक्रमण नहीं होता और न भेद अस्पष्ट होता है। इस प्रकार भारोपीय-भापा परिवार के केंदम् वर्ग में कैल्टिक, जर्मन, लैटिन, ग्रीक, हित्ताइट और तोवारी भाषाग तथा शतम् वर्ग में अल्वेनियन, लैटो-स्लाव्हिक, 'श्रामनियन और पार्य भाया पाती है । यूरेशिया के पश्चिमी कोने में केल्टिक शाखा की भापाएँ बोली जाती है । एक दिन था जब इन शाखा का एशिया-माइनर में गेलेटिया तक प्रसार था, पर अब तो वह यूरोप के पश्चिमोत्तरी कोने से भी धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। इन शाखा का इटालियन शाखा से इतना अधिक मान्य है कि स्यात् उनना अधिक साम्य मेस्टिगशाला भारतीय और रानी को छोड़कर किन्हीं दो भागपीय शाखामों में न मिल सकेगा। इटालियन शाग्या ही की नाई फन्दिर में गाभा के कारण दो विभाग किये जाने है--एक क- गर्गीय टिक; 'पीर दुना प-नर्गीय केन्टिका एक वर्ग की भाषात्रों में म. पाया जाना दना वर्ग की भाषा में वहीं 'मिनना है । जैन "पना में पाया जाना और त्रायशि में कांस्कइन